Wednesday, September 23, 2020

Santosh Pathak : 10 June ki Raat

 उपन्यास : दस जून की रात 

लेखक :संतोष पाठक 
श्रेणी : थ्रिलर 
प्रकाशक : सूरज पॉकेट बुक्स, ठाणे , महाराष्ट्र। 
मूल्य : 280/-
पृष्ठ संख्या : 230 

दस जून की रात 


सबसे पहले तो एक डिस्क्लेमर सबके समक्ष रखना चाहूंगा कि मैं कोई सर्टिफाइड समीक्षक नहीं हूँ  और इस  ब्लॉग पर मैं जो किताब अपनी खून पसीने की कमाई से खरीदता हूँ  उसके बारे मैं निष्पक्ष राय रखने की कोशिश करता हूँ जितना मैं समझ पाता हूँ और आप मेरी राय से इत्तेफाक रखें ये जरुरी तो नहीं, पर हम बात तो कर ही सकते हैं पुस्तकों के बारे में।

  यहां मैं श्री संतोष पाठक द्वारा लिखे गए उपन्यास दस जून की रात के बारे मैं, जो मैंने अभी अभी पढ़ा है, के बारे मैं बात करना चाहूंगा। सूरज पॉकेट बुक्स के नए नवेले सेट में यह उपन्यास प्रकाशित हुआ है और ये बात मुझे एक बार फिर माननी पड़ेगी की उपन्यास को एक बेहतर एवं स्तरीय साज सज्जा के साथ पाठकों के सामने प्रस्तुत किया गया है।  आवरण पृष्ठ पर  कार्टून टाइप के चरित्र चित्रण से बचकर एक रहस्य्मयी रात का सन्नाटा दिखता हुआ कलेवर है जो उपन्यास के नाम से मेल खाता हुआ है। सूरज पॉकेट बुक्स ने रहस्य रोमांच और अपराध को अपना जॉनर चुना है और इस विधा की पुस्तकों को लुगदी प्रकाशन के अभिशाप से छुटकारा दिलाकर उच्च क्वालिटी के कागज पर छपी पुस्तके अब पाठकों तक पहुंचने का जिम्मा सफलता पूर्वक निभाया है। इस प्रयास में यह प्रकाशन इंग्लिश भाषा में इसी जॉनर की पुस्तकों को प्रकाशित करने वाले कई नामचीन प्रकाशकों से इक्कीस ही है कमतर तो बिलकुल भी नहीं।

        संतोष पाठक ने यह उपन्यास थ्रिलर उपन्यास के रूप में  लिखा है जिसमे आपको उनके रचे गए पात्र प्राइवेट जासूस विक्रांत गोखले या खोजी पत्रकार आशीष गौतम के दर्शन नहीं होंगे। यही इस उपन्यास की खास बात है। इससे पहले के संतोष पाठक के  उपन्यासों में मनोरंजक उपन्यास जगत के वट वृक्ष शक्शियत सुरेंदर मोहन पाठक की झलक साफ़ नजर आती थीऔर इस बात को संतोष पाठक ने ईमानदारी से स्वीकार भी किया है। । इससे पहले के उपन्यास क़त्ल का पहेली में संतोष पाठक ने आपकी अलग जमीं खोजने की शुरुआत कर दी थी और प्रस्तुत उपन्यास दस जून की रात में  यकीनी तौर पर उन्होंने उस प्रभाव से मुक्त होने में  सफलता प्राप्त की है।

             दस जून की रात  इंस्पेक्टर सतपाल सिंह के लिए क़यामत की रात साबित होती है  वो इसलिए कि पुलिसिया रोब मे वो अनजाने में एकऐसे शक्स  को एक लाश की शिनाख्त के लिए बुला बैठता है जो एक पनौती  है!!!!! जी हाँ !!!! पनोती !!! यही नाम है इस उपन्यास के नायक विशाल सक्सेना का जो उसके करीबी  लोगों ने दिया है।  विशाल सक्सेना एक पच्चीस साल का युवक है जिसके सर से बाप का साया उठने के बाद उसकी मां  ने उसका पालन पोषण  नौकरी करते हुए किया है। विशाल क्रिमिनोलॉजी  और पुलिस एडमिनिस्ट्रेशन में पोस्ट ग्रेजुएट है , बॉक्सिंग और निशानेबाजी का चैंपियन है।
 संतोष पाठक ने एक ऐसा चरित्र गढ़ा है जो दो विपरीत ध्रुवों का संगम है। वह बुद्धिमान होते हुए अहमक हो  सकता है और अहमकाना हरकत करते हुए निहायत चतुराई से दूसरे को गच्चा भी दे सकता है। पढ़ा लिखा पर बेतरतीब मस्त मौला है  परन्तु दूसरों के लिए है पनौती। इंस्पेक्टर सतपाल खुद कबूल करता है कि "सच तो ये है कि मैंने इसके जैसा सीधा सादा , मक्कार ,कुशाग्र बुद्धि वाला बेवकूफ , नर्मदिल बेरहम , किस्मत वाला बदकिस्मत आदमी ताजिंदगी  नहीं देखा।''
इस पनौती को बुला बैठता है इंस्पेक्टर सतपाल सिंह। जो रात विशाल को उसके जीवनसाथी संजना कुलकर्णी से मिलवाने वाली  थी उसी रात को विशाल का सामना होता है एक लड़की की लाश से जिसे विशाल उर्फ़ पनोती नहीं जानता और पुलिस कहती है कि लड़की उसकी जानकार है क्योंकि लड़की ने मरने से पहले पनौती को कई बार फ़ोन किये थे। यहीं जो कहानी रफ्तार पकड़ती है तो रुकने का नाम नहीं लेती।
कहानी में बड़े रोचक मोड़ हैं और खतरनाक भी इतने हैं कि इंस्पेक्टर सतपाल खुद सलाखों के पीछे पहुँच जाता है और इल्जाम होता है  स्थानीय बाहुबली महावीर सिंह के एक विश्वास पात्र  प्यादे के खून का।  इसी घटना क्रम में फरीदाबाद की पुलिस होती है अपने नायक पनोती  उर्फ़ विशाल के पीछे जो हर हाल मैं उसे पकड़ना चाहती है । फिर शुरू होता है घाट और प्रतिघात का सिलसिला जिसमे पनौती की जान पर बन आती है। पनोती को अब कातिल भी खोजना है , अपनी जान भी बचानी है और इंस्पेक्टर सतपाल सिंह के साथ वो जिस बर्र के छत्ते में हाथ दे बैठता है उससे निपटना भी है।
                दस जून की रात एक मर्डर निस्ट्री तो है ही साथ में एक एक्शन पैक्ड थ्रिलर भी है।  बहुत दिनों के बाद कोई ऐसा उपन्यास हाथ में आया जिसके चरित्र साकार  होकर आपके साथ चलने लगे हो। प्रत्येक चरित्र को संतोष पाठक एक अलग रंग में रंगने में कामयाब रहे है चाहे वो निक्की हो या नेहा, संजना हो या आशा। मुश्ताक , विक्रम सैनी, ओमकार सिंह, इंस्पेक्टर राघव सब अपनी जगह जमे हैं यहाँ तक कि पनौती की दोस्त सुचित्रा अपने चुलबुलेपन की छाप छोड़ जाती है।   उम्मीद है यह से उपन्यासकार संतोष पाठक का  वो सफर शुरू होगा जिसकी उनके पाठकों को आस है। उनका  यह चरित्र विशाल सक्सेना उर्फ़ पनौती आगे आने वाले समय में हो सकता है ऐसे लोगों को इन्साफ दिलाने वाला हो जो आम जान जीवन से आते है और अपराध जगत से जिनका कोई वास्ता न हो। 
 इस उपन्यास का नायक विशाल सक्सेना आम अदना सा नागरिक है लेकिन एकदम से वायलेंट हो कर कानून को  अपने हाथ में लेना अखरता है और उसके द्वारा काम जिस परिस्थतियों में हुए हैं तत्कालीन रूप से सहीं लग सकते हैं पर न्यायोचित हैं या नहीं इस विमर्श से संतोष पाठक जी ने परहेज किया है। उनके दूसरे उपन्यासों के मुकाबले दस जून की रात में पनौती द्वारा इस्तेमाल की गयी भाषा संयमित और मर्यादा की सीमा में है जो इस किताब का प्लस पॉइंट है और सुरेंदर मोहन पाठक की छाया  से कुछ हद तक उनको दूर करने में कामयाब रहा है। 
   कुल मिला कर उपन्यास रोचक और पाठकों की कसौटी पर जिसकी खरा उतरने की प्रबल सम्भावनाहै और संग्रहणीय श्रेणी का स्तर है।
मेरी नजर में उपन्यास की रेटिंग ★★★★★/★★★★★

निम्न लिंक से आप उपन्यास खरीद  सकते हैं।
1)   https://www.amazon.in/Dus-June-Raat-Santosh-Pathak/dp/9388094204/ref=sr_1_1?ie=UTF8&qid=1551433515&sr=8-1&keywords=santosh+pathak+hindi+novel
2 ) http://www.soorajbooks.com/product/dus-june-ki-raat/
Santosh Pathak

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