पुस्तक : # हैशटैग – अर्बन स्टोरीज़
लेखक
: सुबोध भारतीय
प्रकाशन
: सत्यबोध प्रकाशन,
सैक्टर 14 विस्तार, रोहिणी
पृष्ठ
: 168
मूल्य
: 175/-
उपलब्ध
: अमेज़न और सत्यबोध प्रकाशन पर उपलब्ध
इस
कहानी-संग्रह के लेखक सुबोध भारतीय जी प्रकाशन क्षेत्र में अपने पिता श्री लाला
सत्यपाल वार्ष्णेय की विरासत को संभाले हुए दूसरी पीढ़ी के ध्वजवाहक हैं । सुबोध जी
नीलम जासूस कार्यालय और उसकी सहयोगी संस्था सत्यबोध प्रकाशन को एक बार फिर से वह
मुकाम दिलाने की पुरजोर प्रयास कर रहें है जो नीलम जासूस कार्यालय को लोकप्रिय
साहित्य के स्वर्णिम काल में हासिल था । वे अपनी कोशिशों में काफी हद तक कामयाब भी
रहें हैं । 2020 के कोरोना काल से अबतक उनके प्रकाशन संस्थान से सौ से अधिक
पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जो उनकी अदम्य जिजीविषा का ही परिणाम है ।
इन
सब व्यस्तताओं के बावजूद सुबोध जी का एक साहित्यकार रूप भी सामने आया है । उनके
द्वारा लिखी हुई कहानियों का संग्रह #हैशटैग-अर्बन
स्टोरीज़, हाल ही में, नीलम जासूस
कार्यालय की सहयोगी संस्था, ‘सत्यबोध
प्रकाशन’ से प्रकाशित हुआ है ।
#हैशटैग : टाइटल पेज
आजकल, जीवन का ऐसा कोई पल
नहीं है जिसमें हम सोशल मीडिया से न जुडें हों । सुबह की शुभकामनाओं से लेकर
रात्रि के सोने तक हम इस आभासी संसार से दूर नहीं हैं । सोशल मीडिया में #हैशटैग किसी क्रान्ति से कम नहीं है जो कई प्रकार से सामाजिक सरोकारों से
दूर बैठे हुए अंजान लोगों को एक मंच पर लाने का काम करता है । सुबोध भारतीय जी की किताब का शीर्षक अपने आप
में अलग है जो पाठक को पहले ही आगाह कर
देता है कि किस तरह के समाजिक परिवेश की कहानियाँ उसे पढ़ने को मिलने वाली हैं ।
किताब
का मुखपृष्ठ साधारण होते हुए भी अपने आप में एक असाधारण कलात्मकता को दर्शाता है ।
आवरण पर दिखाई गई युवती इस कहानी संग्रह में शामिल #हैशटैग नामक
कहानी की नायिका हो सकती है या फिर सुबोध भारतीय जी की कहानी के पात्रों में से
कोई भी पात्र, जो अपने जीवन के अँधियारे पलों में से कुछ
रोशनी ढूँढने की तमाम कोशिश करते हैं । उस युवती के चेहरे पर परिलक्षित होती
रेखाएँ प्रतीक हैं उन दुविधाओं, परेशानियों और दुख का, जिनसे समाज का हर नागरिक अपने
जीवन में कभी न कभी सामना करता है ।
#हैशटैग : अर्बन स्टोरीज़ : बदलते समाज में उम्मीदों को तलाश करती कहानियाँ
आप
इस पुस्तक को 8 कहानियों का एक गुलदस्ता कह सकते है जिसमें हर कहानी का रंग अलग है, परिवेश बेशक महनगरीय है लेकिन ये कहानियाँ हर किसी सामाजिक परिवेश का
प्रतिनिधित्व करने की क्षमता रखती है । इन आठ कहानियों में क्लाइंट, खुशी के हमसफर, शीर्षक कहानी #हैशटैग, बिन बुलाये मेहमान,
अहसान का कर्ज, अम्मा, हम न जाएंगे
होटल कभी, डाजी : खुशियों का नन्हा फरिश्ता सम्मिलित हैं ।
हर कहानी शुरुआत से ही एक कौतूहल जगाने में कामयाब होती है जिससे पाठक तुरंत उस
कहानी का अंत जानना चाहता है । यही बात इस कहानी संग्रह को कामयाबी प्रदान करती है
।
1.
क्लाइंट
: यह कहानी महानगरीय जीवन में अकेले रह रहे देव प्रसाद की कहानी है जिसका एक अपना अतीत
है । उस अतीत के साये में एकाकी और श्याम-श्वेत जीवन जी रहे देव प्रसाद को एक
टेलेफोनिक काल वापिस उम्मीद भरे भविष्य की तरफ खींच लाती है जहां उसके तसव्वुर में
फिर रंग बिखरने लगते हैं । सुबोध भारतीय जी ने देव प्रसाद के चरित्र के माध्यम से
पुरुष मनोवृति का सटीक चित्रण किया है । इस तरह की मनोदशा से लगभग सभी पुरुष अपने
जीवन की किसी न किसी अवस्था गुजरते हैं । किसी नारी का सामीप्य देव प्रसाद की
कल्पना के घोड़ों को एक ऐसी उड़ान प्रदान करता है जिसका अंत उसके काल्पनिक भविष्य को
चकनाचूर कर देता है । मानवीय मनोविश्लेषण करते हुए सुबोध जी ने इस कहानी को सार्थक
परिणति प्रदान की है ।
2.खुशी
के हमसफर/ #हैशटैग : लिव-इन रिलेशन महानगरीय जीवन
में पनपता एक नया रोग है जिसे समाज में अभी पूर्ण स्वीकार्यता नहीं मिली है ।
सुबोध भारतीय जी ने अपनी दोनों कहानियों में लिव-इन रिलेशन के दो अलग-अलग पहलुओं
को सामने रखा है । ‘खुशी के हमसफर’ में जहां पर निरुपमा वर्मा और
राजेन्द्र तनेजा के बीच में एक दूसरे के प्रति सम्मान और नैतिक समर्पण है जो
शारीरिक लिप्साओं से परे है वहीं पर #हैशटैग में नई पीढ़ी की
मानसिक और शारीरिक स्वछंदता का चित्रण है जहां पर मानवीय संवेदनाएं जीवन के सबसे
निचले पायदान पर है । ‘खुशी के हमसफर’
बढ़ती उम्र के साथ संतान के अपने माता-पिता से विमुख हो जाने की व्यथा के साथ-साथ
जीवन के आखिरी पड़ाव में भी जीवन को सार्थकता प्रदान करने की जद्दोजहद को बखूबी
दर्शाती है वहीं #हैशटैग सोशल मीडिया के नकारात्मक और
सकारात्मक पहलुओं को इंगित करती है ।
3.
बिन बुलाये मेहमान/अहसान का कर्ज़ : इन दोनों ही कहानियों में
मेहमानों का चित्रण है । ‘बिन बुलाये मेहमान’ में आगंतुक किशन और राधा, मोहित के जाने-पहचाने मेहमान हैं, वहीं पर ‘अहसान का कर्ज़’ में सुखबीर के घर में मेहमान के तौर
पर आने वाले सरदार जी गुरविंदर रहेजा उसके लिए नितांत अजनबी है ।
कई बार जो लोग हमें किसी बोझ की तरह से लगते हैं वही लोग हमारे जीवन में
खुशियाँ भर देते हैं और जिनसे हमें बहुत उम्मीद होती है वो लोग मुश्किल के समय पीठ
दिखा जाते हैं । वहीं पर जाने-अनजाने मुश्किल वक्त में किसी को दिया गया सहारे के
रूप में रोपा गया बीज वक्त के साथ कई गुना फल देकर जाता है । इन दोनों
कहानियां इन दोनों भावनाओं को केंद्र में रख कर आगे बढ़ती हैं ।
4.
अम्मा : इस
कहानी का ताना-बाना एक अंजान वृद्ध स्त्री और एक परिवार के बीच पनपते स्नेह
और अपने आत्मसमान को बनाए रखने की कहानी
है । एक अंजान भिखारिन की तरह जीवन-यापन करती हुई एक वृद्धा अम्मा के रूप में रेणु
के परिवार का अभिन्न अंग बन जाती है । विपरीत परिस्थितियों में भी अपने आप को
टूटने और बिखरने से बचाने की सीख दे जाती है ‘अम्मा’ । यह कहानी लेखक के नजरिए से चलती है और अंत सुखद है ।
5. हम
न जाएँगे होटल कभी : यह कहानी एक हल्के-फुल्के अंदाज में लिखी गई है । इसे हम
हास्य और व्यंग का मिश्रण कह सकते हैं । कहानी एक रोचक अंदाज में लिखी गई है जो इस
बात का परिचायक है कि सुबोध जी व्यंग के क्षेत्र में बखूबी अपनी कलम चला सकते हैं
। उम्मीद है कि इस विधा में उनकी और भी रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी ।
6.
डाज़ी-खुशियों का नन्हा फरिश्ता : यह इस संग्रह का सबसे अंतिम कहानी
है । एक पालतू जानवर किस तरह से परिवार में अपनी जगह बना लेता है, इसका सुबोध भारतीय जी ने ‘डाज़ी’ के माध्यम से बड़ा खूबसूरत और मार्मिक चित्रण किया है । हम लोगों में से
बहुत से लोग इस अनुभव से गुजरे हैं और ऐसा लगता है कि जैसे हमारे ही परिवार की बात
चल रही है । इस कहानी या यूं कहे कि रेखाचित्र को पढ़ने के बाद यूं लगने लगता है कि
डाज़ी हमारे आसपास ही है ।
प्रस्तुत
कहानी-संग्रह की कहानियाँ जीवन में धूमिल होती किसी न उम्मीद को तलाश करती हुई
प्रतीत होती हैं । ‘क्लाईंट’ और ‘डाज़ी’ को छोडकर सभी कहानियाँ एक सुखांत पर जाकर ख़त्म होती हैं जो लेखक के
सकारात्मक सोच का परिचायक है । काश, ऐसा आम जिंदगी में भी हो
पाता ।
सुबोध
भारतीय जी की भाषा शैली बिलकुल सरल है । मेरी नजर में, किसी लेखक का सरलता से अपनी बात कह देना और पाठक तक अपना दृष्टिकोण
पहुंचा देना सबसे कठिन होता है । किसी भी कहानी में उन्होने अपनी विद्वता का
प्रदर्शन नहीं किया है जो काबिले तारीफ है वरना तो साहित्य का एक पैमाना यह भी हो
चला है जो रचना पढ़ने वाले के सिर पर जितना ऊपर से जाएगी वह उतनी ही श्रेष्ठ होगी ।
अपने पाठक के धरातल पर जाकर उससे संवाद करना सुबोध जी खूबी है । कुछ जगहों पर
दोहराव है जिससे बचा जा सकता है ।
इस
श्रेष्ठ साहित्यिक कृति के लिए सुबोध जी को हार्दिक बधाई । सर्वश्रेष्ट इस लिए
नहीं कहा कि अभी तो आग़ाज़ हुआ है और उम्मीद है कि हम पाठक उनकी रचनाओ से अब लगातार रूबरू
होते रहेंगे ।
#यह समीक्षा तहक़ीक़ात पत्रिका के दूसरे अंक में प्रकाशित हुई है ।
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