पुस्तक : प्रेत लेखन (हिन्दी पल्प फिक्शन में प्रेत लेखन का नंगा सच)
लेखक : योगेश मित्तल
प्रकाशक : नीलम जासूस कार्यालय, रोहिणी, दिल्ली
MRP : 275/-
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प्रेत लेखन |
‘हिन्दी पल्प फिक्शन में प्रेत लेखन का नंगा सच’ या संक्षेप में ‘प्रेत लेखन’ श्री योगेश मित्तल द्वारा लिखी गई अपने आप में एक अनूठी किताब है जिसे नीलम जासूस कार्यालय द्वारा प्रकाशित किया गया है।
योगेश मित्तल जी ने अपनी ज़िंदगी के गुजरे दिनों को याद करते हुए, आत्मकथात्मक अंदाज में, 1963 के आसपास का समय अपनी पुस्तक में शुरू से लिया है और अपने लेखकीय जीवन की यादों को एक सूत्र में पिरोया है ।
योगेश मित्तल |
जहां तक मैं समझ पाया हूँ कि हिन्द पॉकेट बुक्स से कर्नल रंजीत के नाम से उपन्यास निकले और उनकी सफलता ने सभी प्रकाशकों को ध्यान खीचा । जनप्रिय ओम प्रकाश शर्मा और श्री वेद प्रकाश कम्बोज के नाम से नकली लेखन शायद उस वक्त उनकी प्रसिद्धि को दर्शाता है । लेकिन इस प्रेत लेखन का खामियाजा आखिरकार उन्हें भी भुगतना पड़ा ।
योगेश मित्तल जी का रुझान इस प्रेत लेखन में क्यों था या वो इसे कैसे स्वीकार कर पाये – इस बात का जवाब हमें उन्हीं के जुबानी मिलता है – “मैं खामोश रह गया तथा यही सोचा – ‘सामाजिक और जासूसी उपन्यासों में अगर नाम नहीं छपता, न छपे। पैसे तो मिल रहें हैं । नाम के लिए कभी कुछ साहित्यिक लिखेंगे।’
इस किताब की नीव या शुरुआत फ़ेसबुक पर ‘राजभारती के फ़ैन’ पेज पर साझा किए गए संस्मरणों से हुई थी जो लोगों को बहुत पसंद आए थे । जिसे मैंने भी पढ़ा था । उसी वक्त इन संस्मरणों को एक किताब के रूप छापने की मांग शुरू हो गई थी जिसे आखिरकार नीलम जासूस कार्यालय ने साकार किया ।
पुस्तक की शुरुआत में लगभग पचास पेज में भूमिका/ प्रशस्ति लेखन है जिसे कम किया जा सकता था । यही पेज योगेश मित्तल जी को दिये जा सकते थे जिसमें वे अपनी यादों को थोड़ा और विस्तार दे सकते थे जिससे पढ़ने वालों को शायद ज्यादा लुत्फ आता । अंत में ऐसा लगता है जैसे किताब को जल्दी समेट दिया गया हो ।
इस सबके बावजूद ‘प्रेत लेखन’ एक संग्रहणीय पुस्तक है जिसे लोकप्रिय साहित्य को चाहने वाला अपने पास जरूर रखना चाहेगा ।