उपन्यासकार का नाम: संतोष पाठक
पब्लिकेशन: थ्रिल वर्ल्ड
पृष्ठ संख्या : 226
मूल्य : 230/-
ASIN नंबर: ASIN : B08CSK823D
अमेजॉन लिंक :द साइलेंट मर्डर
"वह दूसरा बंगला रमेश भण्डारी ने हाल ही में अपनी पुरसुकून जिंदगी और तन्हा रहने की फितरत के मद्देनजर खरीदा था । बाद में दोनों बंगलों के बीच की बाउंड्री को तोड़कर उन्हें आपस में यूं जोड़ दिया गया कि बाहर से देखने पर वह अब दो की बजाय एक नजर आते थे ....... वह साठ के पेटे में पहुंचा, नाजुक तंदरुस्ती वाला खूब लंबा चौड़ा शख्श था, जिसे बीपी से लेकर शुगर तक ! बस समस्या ही समस्या थी । दो बार दिल का दौरा पड़ चुका था, ऐसे में उसकी कभी भी चल-चल हो जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी ।" ( पृष्ठ 9-10)
"द साइलेंट मर्डर" संतोष पाठक जी का लिखा हुआ एक नवीनतम उपन्यास है। यह उपन्यास "आशीष गौतम सीरीज" का उपन्यास है । कोरोना कॉल में संतोष पाठक जी ने अपने पाठकों को एक के बाद एक बेहतरीन तोहफा दिया है। यह उपन्यास एक Who Done It किस्म का उपन्यास है। इस उपन्यास में पत्रकार आशीष गौतम की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।
कहानी:-
कहानी की शुरुआत में एक धनाड्य व्यक्ति रमेश भंडारी की नौकरानी कोमल सामंता सुबह उसके घर में नाश्ता देने के लिए जाती है । रमेश भण्डारी द्वारा कोई जवाब ना मिलने पर उसे किसी अनहोनी की आशंका होती है । वह उसके परिवार वालों को बुलाती है। उसके पुत्र प्रकाश और अविनाश पुलिस को सूचना देते हैं और पुलिस इंस्पेक्टर सुधीर राय के आने पर सब इंस्पेक्टर अनिल रावत मकान का या कहें उस कमरे का दरवाजा बड़ी मुश्किल से तोड़ा जाता है । कमरे के अंदर धनकुबेर रमेश भंडारी मृत पाया जाता है।
उसकी मेडिकल हिस्ट्री के अनुसार वह हार्ट पेशेंट था और सभी यही मानते हैं कि रात को किसी वजह से उस व्यक्ति को हार्ट-अटैक आया होगा और उसने अपने परिवार से सहायता मांगने की कोशिश की होगी लेकिन अंधेरे और हार्ट-अटैक के दर्द की वजह से वो उसमें कामयाब नहीं हो पाया था। इंस्पेक्टर सुधीर इसे एक सीधी-सादी हार्ट अटैक से हुई मौत की संज्ञा देता है। लेकिन तब इस कहानी में पदार्पण होता है। आशीष गौतम का और वह जब इस बारे में तहकीकात करनी शुरु करता है तो उसे शक होता है कि रमेश भण्डारी अपनी आई मौत नहीं मरा था, बल्कि उसे किसी ने जबरन रुखसत कर दिया था। आशीष गौतम के सद्के रमेश भण्डारी का दोबारा पोस्टमार्टम होता है ।उसके बाद रहस्य की परतें परत दर परत खुलती चली जाती हैं और फिर यह सीधी-सादी मौत एक साइलेंट मर्डर का केस लगना शुरू हो जाती है । अपनी तहकीकात पूरी करते हुए आशीष अंत में इस केस को सुलझाने में कामयाब रहता है।
महत्वपूर्ण पात्र:-
इस कहानी के अंदर रमेश भंडारी के अलावा कुछ और अहम पात्र हैं जो पूरी कहानी में आपके साथ रहते हैं । जिसमें रमेश भंडारी के दोनों पुत्र अविनाश और प्रकाश, उसका दामाद रवि कांत, डॉक्टर अनिल अस्थाना, फोरेंसिक एक्सपर्ट पावन मिश्रा, वकील हरिदास गोस्वामी, विधायक महिपाल सिंह, विधायक का पुत्र विप्लव सिंह, पुलिस इंस्पेक्टर सुधीर राय और उसका सहायक अनिल रावत, मेड कोमल सामंता, राम परसाद, असगर अहमद और अनिल त्रिपाठी ।
आशीष गौतम की तहकीकात उपन्यास में उपस्थित प्रत्येक पात्र की जांच पड़ताल करती है, जिसमें उसका मुख्य फोकस अविनाश, रविकांत और प्रकाश पर रहता है साथ में उसके शक के दायरे में है विप्लव सिंह । संतोष पाठक जी ने इस कहानी में एक मेडिकल ट्विस्ट भी डाला है जो पाठकों को पसंद आएगा। कहानी के बारे में हम ज्यादा बातें नहीं करते हैं क्योंकि यह एक सपोइलर के रूप में कार्य कर सकता है। अतः आखिर में गुनहगार कौन है यह आप उपन्यास पढ़ कर ही पता लगाएं तो ज्यादा मुनासिब रहेगा ।
मेरी राय:-
अब हम इस उपन्यास के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर बात करते हैं :
1) सबसे पहले इस उपन्यास की साज-सज्जा। यह उपन्यास व्हाइट पेपर में और एक आकर्षक मुखपृष्ठ के साथ थ्रिल वर्ल्ड पब्लिकेशन ने छापा है। पेपर क्वालिटी और प्रिंटिंग अव्वल दर्जे की है जो पाठकों के लिए बहुत हर्ष का विषय हो सकते हैं।
2) संतोष पाठक जी की लेखनी दिन प्रतिदिन और सुदृढ़ होती जा रही है । कहानी, चरित्र चित्रण और घटनाक्रम पर संतोष पाठक जी की मजबूत पकड़ है। अब उनके चरित्र पाठकों के दिमाग में अपनी अलग अलग छवि बना लेते हैं, जिससे कहानी का मजा दुगना हो जाता है।
3) अश्लीलता और गाली गलौज की भाषा से उन्होंने इस उपन्यास को पूर्ण रूप से मुक्त रखा है।
पर इस उपन्यास में कुछ ऐसी बातें हैं खटकती भी हैं कि जैसे मकतूल रमेश भंडारी का विधायक महिपाल के नौकरों के नाम पर बेनामी संपत्ति लेना। क्योंकि पाठक जी ने यह चित्रित किया है कि विधायक महिपाल और रमेश भंडारी की आपस में नहीं बनती है । उनका उस घर को लेकर के विवाद था या मनमुटाव है जिसमें भंडारी मृत पाया जाता है। उसी महिपाल सिंह के नौकरों के नाम पर कोई व्यक्ति बेनामी संपत्ति क्यों खरीदेगा? क्या उसे पता नहीं कि यह दोनों नौकर महिपाल सिंह के हैं? वह इस संपत्ति के सौदों के लिए अपने दामाद रवि कांत पर भरोसा करता है, जिसे वह पसंद नहीं करता । यह मुझे थोड़ा अटपटा लगा,क्योंकि संपत्ति की खरीद में हम आम तौर पर अपने विश्वासपात्र लोगों से ही बात करते हैं ।
दूसरा जो पॉइंट है कि स्ट्रॉ का उनके घर के भीतर बाउंड्री के अंदर मिलना । यह कथाकार की अपनी सुविधा हो सकती है कि वह अपने घटनाक्रम को किस प्रकार दिखाता है और चीजों को कैसे बरामद होता हुआ दिखाता है, लेकिन इस बात की जस्टिफिकेशन हमें नहीं मिलती। अगर गली में ही मिलता तो क्या आशीष का ध्यान खींचने में कामयाब होता?
अगर पूरे उपन्यास के कथानक पर बात की जाय तो मेरी राय में यह एक पठनीय उपन्यास है। कहानी का नायक आशीष गौतम 'खबरदार' अखबार में चीफ रिपोर्टर है। कहानी एक स्थापित ढर्रे पर चलती प्रतीत होती है। फिर भी संतोष जी शुरू से ही इसमें रोचकता बनाये रखने में कामयाब रहे हैं।
अगर हम उपन्यास को पूर्ण रूप से देखें तो एक मनोरंजक उपन्यास संतोष पाठक जी ने प्रस्तुत किया है जिसे उनके पाठक भरपूर पसंद करेंगे ।