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Monday, February 14, 2022

प्रेत लेखन : योगेश मित्तल

 
पुस्तक : प्रेत लेखन (हिन्दी पल्प फिक्शन में प्रेत लेखन का नंगा सच)
लेखक : योगेश मित्तल
प्रकाशक : नीलम जासूस कार्यालय, रोहिणी, दिल्ली
पृष्ठ संख्या : 268
MRP : 275/-
Amazon link :  प्रेत लेखन

pret lekhan
प्रेत लेखन

 हिन्दी पल्प फिक्शन में प्रेत लेखन का नंगा सच या संक्षेप में प्रेत लेखन श्री योगेश मित्तल द्वारा लिखी गई अपने आप में एक अनूठी किताब है जिसे नीलम जासूस कार्यालय द्वारा प्रकाशित किया गया है।
प्रेत लेखन का शीर्षक एक कौतूहल जगाता है कि किताब में आखिर मिलेगा क्या ? किसी प्रेत द्वारा किया लेखन ? जी नहीं, ये किताब घोस्ट राइटिंग से संबंध रखती हुई किताब है ।
आप समझते ही होंगे कि घोस्ट राइटिंग या प्रेत लेखन किसी स्थापित लेखक के नाम से या किसी नकली नाम के पीछे रहकर किया गया लेखन है जिसमे असली लेखक की पहचान पढ़ने वालों के सामने नहीं आ पाती है । ऐसे लेखक को घोस्ट रायटर या प्रेत लेखक कहते हैं ।
योगेश मित्तल जी ने अपनी ज़िंदगी के गुजरे दिनों को याद करते हुए, आत्मकथात्मक अंदाज में, 1963 के आसपास का समय अपनी पुस्तक में शुरू से लिया है और अपने लेखकीय जीवन की यादों को एक सूत्र में पिरोया है ।

योगेश मित्तल 


जैसे जैसे हम इस किताब को पढ़ते हैं तो हैरान होते चले जाते हैं कि प्रेत लेखन की सोच या लालच किस कदर उस वक्त के प्रकाशकों और लेखकों पर हावी हो गई थी कि हर कोई इसमें कूदना चाहता था ।
जहां तक मैं समझ पाया हूँ कि हिन्द पॉकेट बुक्स से कर्नल रंजीत के नाम से उपन्यास निकले और उनकी सफलता ने सभी प्रकाशकों को ध्यान खीचा ।  जनप्रिय ओम प्रकाश शर्मा और श्री वेद प्रकाश कम्बोज के नाम से नकली लेखन शायद उस वक्त उनकी प्रसिद्धि को दर्शाता है । लेकिन इस प्रेत लेखन का खामियाजा आखिरकार उन्हें भी भुगतना पड़ा ।
योगेश मित्तल जी का रुझान इस प्रेत लेखन में क्यों था या वो इसे कैसे स्वीकार कर पाये – इस बात का जवाब हमें उन्हीं के जुबानी मिलता है – “मैं खामोश रह गया तथा यही सोचा – सामाजिक और जासूसी उपन्यासों में अगर नाम नहीं छपता, न छपे। पैसे तो मिल रहें हैं । नाम के लिए कभी कुछ साहित्यिक लिखेंगे।
इस किताब की नीव या शुरुआत फ़ेसबुक पर राजभारती के फ़ैन पेज पर साझा किए गए संस्मरणों से हुई थी जो लोगों को बहुत पसंद आए थे । जिसे मैंने भी पढ़ा था । उसी वक्त इन संस्मरणों को एक किताब के रूप छापने की मांग शुरू हो गई थी जिसे आखिरकार नीलम जासूस कार्यालय ने साकार किया ।
पल्प फिक्शन के सुनहरी दौर में रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड पर बुक-स्टाल पर हमने कहीं न कहीं मनोज, सूरज, धीरज, रानु, राजवंश, कर्नल रंजीत या मेजर बलवंत के उपन्यास जरूर देखें होंगे । ये सिर्फ काल्पनिक नाम थे और इनके पीछे थे – मख़मूर जालंधरी, फारुख अर्गली, आरिफ़ म्हारवी, केवल कृशन कालिया, हादी हसन और योगेश मित्तल ।
पूरी किताब उस वक्त के रोचक किस्सों से भरी हुई है । जो लोग उस दौर से पाठक के तौर पर गुजरे हैं, उनके लिए उस दौर के लेखन जगत की बातों को जानना एक अनूठा अनुभव होगा, जिसके बारे में यहाँ वहाँ से बात उठती रहती थी । योगेश मित्तल जी ने लगभग पूरा सच पाठकों के सामने रखा है । उनकी याददाश्त का लोहा मानना पड़ेगा जिसके दम पर उन्होंने प्रत्येक दृश्य पाठकों के सामने साकार कर दिया है ।
पुस्तक की साज-सज्जा काबिले तारीफ है । आवरण पृष्ठ का डिजाइन नीलम जासूस कार्यालय का सबल पक्ष रहा है जिसमें पूरे नंबर दिये जा सकते हैं । पेपर क्वालिटी और बाइंडिंग उम्दा दर्जे की है जो पाठकों को आकर्षित करती है ।
पुस्तक की शुरुआत में लगभग पचास पेज में भूमिका/ प्रशस्ति लेखन है जिसे कम किया जा सकता था । यही पेज योगेश मित्तल जी को दिये जा सकते थे जिसमें वे अपनी यादों को थोड़ा और विस्तार दे सकते थे जिससे पढ़ने वालों को शायद ज्यादा लुत्फ आता । अंत में ऐसा लगता है जैसे किताब को जल्दी समेट दिया गया हो ।
इस सबके बावजूद प्रेत लेखन एक संग्रहणीय पुस्तक है जिसे लोकप्रिय साहित्य को चाहने वाला अपने पास जरूर रखना चाहेगा ।
इस पुस्तक के बाद योगेश मित्तल जी ने इसी पुस्तक में आगे भी गुफ्तगू जारी रखने का जिक्र किया है जिसमें कई और लेखकों के बारे में संस्मरण आने है । यह सब भविष्य के गर्भ में है लेकिन पाठकों को बेसब्री से इंतजार रहेगा और मुझे भी ।  
© Jitender Nath



      
 

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