उपन्यास : चौसर- द गेम ऑफ डेथ
लेखक : जितेन्द्र नाथ
प्रकाशक : बूकेमिस्ट/सूरज पॉकेट बुक्स
अवेलेबल : Sooraj books link chausar
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Reviews by Readers/Authors
चौसर - दि गेम ऑफ डेथ
जितेंद्र भाई का पहला उपन्यास राख पढ़ने के बाद से ही प्रतीक्षा थी उनकी अगली रचना की ,बल्कि उत्कंठा अधिक थी के क्या और कैसा कथानक लेकर आएंगे।
और फिर हाथ मे आया "चौसर " और
जो पढ़ना शुरू किया तो राजनीति की बिसात पर बिछी रोचक और रोमांचक कहानी के बीच जिसमे जबरदस्त उतार चढ़ाव और तेज रफ्तार घटनाक्रम के बीच कहानी में जहां राजनीति और औद्योगिक घरानों के बीच संबंधों और फिर उनसे पनपने वाले आतंक के रिश्तो की हकीकत से रूबरू करवाया उसके लिए निसंदेह आपने गजब का होमवर्क किया ।
उपन्यास पढ़ते हुए कहानी के पात्र हमें हमारे देश काल और परिस्थितियों के अनुरूप ही लगते हैं जिनसे की पाठक तुरंत ही अपना तारतम्य स्थापित भी कर लेता है इससे कहानी में विश्वसनीयता के साथ-साथ पठनीयता का गुण भी समावेश हो गया है । हालांकि कहानी का ताना-बाना काफी घुमाव लिए हुए हैं, लेकिन इन सब का समापन और उपसंहार भी उतने ही सुघड़ , सुंदर और अच्छे तरीके से किया गया है , की उपन्यास अपनी छाप छोड़ जाता है ।
सच है आज भी हमारे देश कि जो हिफाजत सरहद पर हमारे सैनिक कर रहे हैं उनकी हमारे ही कुछ राजनेताओं को रत्ती भर भी फिक्र नहीं है । वह तो अपनी ओछी राजनीति में ही उलझे रहते हैं , परन्तु जैसे के आपने लिखा " देश की रक्षा के लिए शहीद होना ही हर सैनिक का परम लक्ष्य होता है " बिल्कुल सटीक पंक्तियां है जो कि दिल को भीतर तक छू जाती है और मन में एक ही आवाज गूंजती है --जय हिंद -जय भारत ।
वर्तमान में आ रहे विभिन्न उपन्यासों के बीच बिछी कहानियों की बिसात पर आपका यह उपन्यास शत प्रतिशत विजयी घोषित होता है। बहुत-बहुत बधाई , और आगामी रचना के लिए भी शुभकामनाएं , जो की उम्मीद है जल्दी हमारे पास आएगी।
21.12 2022
आपका प्रशंसक
विशाल भारद्वाज
पोस्ट मास्टर
प्रधान डाकघर
श्री गंगानगर -335001
राजस्थान
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
संजीव शर्मा जी, सीनियर एडवोकेट, पुणे की कलम से.... चौसर by जितेंद्रनाथ
बहुत दिनों बाद ऐसी किताब पढ़ी, जिसने पहले पेज की पहली लाइन से ही कहानी में इंटरेस्ट जगा दिया जो अंत तक जारी रहा. कहानी की सबसे बड़ी खूबी कहानी के पात्रों का शानदार चरित्र चित्रण है, हर पात्र को बहुत ही खूबी से लिखा गया है जिसके कारण वो याद रहते हैं चाहे वो अभिजीत देवल, राजीव, सुधाकर, नैना, नागेश, यासिर खान, आलोक देसाई या फिर योगराज, बसंत पवार, दिलावर, अब्बासी हो या राहुल तात्या, सभी कैरेक्टर का चरित्र चित्रण बहुत बढ़िया तरीके से हुआ है, जिसके लिए जितेंद्रनाथ जी बधाई के पात्र हैं.
कथानक जो आतंकवाद पर आधारित है जो बेहद कसा हुआ है और कहीं भी बोर नहीं करता है, एक्शन भी जबरदस्त है जो कहानी के अनुरूप है सस्पेंस भी अच्छा रहा, एक बेहद विस्तृत कथानक को इतनी आसानी से, अच्छी भाषा, अच्छे शब्दों में लिख कर जितेंद्रनाथ जी ने साबित किया कि उनमें एक सफल लेखक बनने के सभी गुण मौजूद हैं जो हम पाठकों का लंबे समय तक मनोरंजन करेंगे.
चौसर निसंदेह एक शानदार, जबरदस्त किताब है जो लंबे समय तक याद रहेगी.
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
हीरा वर्मा जी की कलम से...
उपन्यास : चौसर - द गेम ऑफ डेथ
लेखक : जितेंद्र नाथ सर जी
प्रकाशन : सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ संख्या : 279
मूल्य : 360₹
बुकेमिस्ट के द्वारा शानदार कवर डिजाइन और किताब का नाम किसी भी पाठक को अपनी ओर आकर्षित करने से रोक न पाएगी।
लेखक सर की ये तीसरी किताब पढ़ रहा हूँ मैं "चौसर - द गेम ऑफ डेथ"
इसके पहले पढ़ी थी "राख" जो उनके द्वारा लेखन पर पकड़ दर्शायी थी जो कामयाब भी रही
उसी से आकर्षित हो कर ये पढ़ने बैठा
One word : लाजवाब
*ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम...*
द हार्ट टचिंग लाइन
दीदार सिंह के लिए तो वाह वाह ही है
आंखे नम कर गए साहब
क्यो ? ये पढ़ के जानिएगा
कहानी शुरू होती है "पर्ल रेसिडेंसी" के होटल से जहाँ "विस्टा टेक्नोलॉजी" के 15 लोग 7 दिन की कॉन्फ्रेंस के लिए आये थे जिन्हें "सिग्मा ट्रेवल्स" की बस अपडाउन करती थी होटल से ऑफिस।
सारे गायब
क्यो ?
का जवाब तो पढ़ के ही मिलेगा
संवाद ने जीवंत बनाये रखा है दृश्य को जेहन में क्योकि चौसर में हार जीत लगी होती है , वही यहां पुलिस की मुठभेड़ ने ताज होटल याद दिला दिया साहब
बोले इसे ले कर और पढ़ कर आप कतई न पछतायेंगे फुलटू पैसा वसूल उपन्यास है।
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
[12/4, 5:23 PM] Jitender Nath: ('चौसर' एक शानदार उपन्यास )
जब मैं किसी उपन्यास को शानदार कहता हूं तो मेरे शब्दों में उसका अर्थ होता है कि उपन्यास की कहानी ने एक समां बांध कर रख दिया, अंत वास्तव में बहुत अच्छा है, संवाद अच्छे हैं...
एक बानगी पढ़िए..
(राजनीतिक एक चौसर का खेल है .........। जो खेल हम खेल रहे हैं वह हमारी जिंदगी की एक नई बाजी है । इस खेल में पासे चाहे कैसे भी पड़ें लेकिन हम लोगों को उम्मीद हमेशा जीत की होती है)
पुलिस की मुठभेड़ कई जगहों पर काफी जीवंत जान पड़ती है, मुठभेड़ के सारे सीन काफी मेहनत से लिखे गए हैं.... मजा आता है पढ़कर, 🥳🥳
जितेंद्र नाथ जी की यह रचना 'पैसा वसूल' है,
Deepankar Shashtri ji
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
मित्र एवं लेखक जितेन्द्र नाथ जी की “चौसर” पढ़ी गई । 📖
बहुत ख़ूब! इतने बड़े स्तर के कथानक को जिस सलीके के साथ (कम पृष्ठों में भी) पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया है,काबिले तारीफ़ है । 🙏
पुनश्च- अंतिम पृष्ठों तक बाँधे रखने और आँखें नम कर देने वाले लेखन के लिए लेखक महोदय को बधाई । 🌹
आबिद बेग जी 👆
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
नोवल - चौसर
लेखक - जितेंद्र नाथ
प्रकाशक - सूरज पॉकेट बुक्स
समीक्षक - दिलशाद सिटी ऑफ इविल वाले
अभी अभी जितेंद्र नाथ जी की चौसर पढ़कर पूरी की। इससे पहले मैने उनकी राख पढ़ी जिसने शानदार छाप छोड़ी थी। राख में पुलिस कार्यप्रणाली का सजीव रूप प्रतीत हुआ। चलिए बात करते हैं चौसर की, जिसकी कहानी शुरू होती है होटल पर्ल रेसीडेंसी से, रिसेप्शन पर रात के साढ़े नो बजे फोन बजता है। उधर से एक व्यक्ति अपने बेटे के बारे में पूछता है की क्या मेरा बेटा होटल पहुंच गया। सुबह को ज्ञात होता है कि विष्टा टेक्नोलोजी के पंद्रह एंप्लॉज जो पर्ल रेसीडेंसी में ठहरे थे अभी तक नही आए। ड्राइवर सहित सभी एंप्लॉयज के नंबर बंद जा रहे थे। सूचना पुलिस को दी जाती है। सिग्मा ट्रेवलर्स के दफ्तर से बस की आखिरी लोकेशन का पता चलता है। बस को घेर लिया जाता है लेकिन उसमे अजनबी ड्राइवर निकलता है। अब सभी का दिमाग चकरा जाता है की सभी यात्री कहां गए और ड्राइवर क्यों बदला।
अगली सुबह एक नदी में एक एंप्लॉय की लाश मिलती है। एक दृश्य में 26 ग्यारह की याद ताजा हो जाती है। जब आतंकवादी एक होटल में हतियारो को गरजाते हुए हुए घुसते हैं। बेहद ही लाइव दृश्य महसूस होता है। आपको नोवल में अनेकों सवाल मिलेंगे जैसे...
बस अपने गंतव्य तक क्यों नही पहुंची?
जो ड्राइवर पकड़ा गया था वह खाली बस लेकर क्यों जा रहा था?
क्या एम्प्लेयर्स मिल सके?
किसका हाथ था एंप्लायस के गायब कराने के पीछे?
कहानी एक्शन पैड है। देशभक्ति से लबरेज है। देश की सुरक्षा दांव पर लगी है। देश के वीर, जांबाज, जान को जोखिम में रखने वाले हीरो इस मिशन में कूद पड़ते हैं। जैसा कि बताया है कहानी एक्शन पैड, सस्पेंस और देशभक्ति समेटे हुए हैं तो दिमागी मनोरंजन की आशा न करें। कहीं कहीं डायलॉग शानदार और जबरदस्त हैं। देश की सुरक्षा के लिए हमारे वीर क्या कर गुजरते हैं इस नोवल में दिखाया गया है। किरदारों में सुधाकर नागेश धनंजय राय, राजीव जयराम, आलोक देसाई, नैना दलवी, शाहिद रिज्वी, नागेश कदम, मिलिंद राणे जैसे हीरो थे। लेखक ने शानदार मराठी भाषा का भी प्रयोग किया है।
एक शानदार डायलॉग जब श्रीकांत सुधाकर से पूछता है, "कैसे हो अब तुम? ज्यादा चोटें तो नही आईं?
तब सुधाकर बुलंद आवाज में कहता है, "ये चोटें तो हमारे शरीर का गहना है सर। जितनी बढ़ेंगी उतना ही मजा आयेगा।"
विदा लेता हूं आपसे फिर मुलाकात होगी, जितंद्रनाथ जी को ढेरों शुभकामनाएं।
दिलशाद अली
★★★★★★★ ★★★★★★★★★★★★★★★
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"राख" के बाद लेखक का दूसरा शानदार कारनामा । वैसे भी जहां राख होती है वहां संभावी अगला काम होता है "गर्दा उड़ना' । लेखनी के इस फेरहिस्त में शामिल है "चौसर" जो इस धारणा के "गर्दे" उड़ा देती है कि कोई उपन्यास क्या एक्शन थ्रिलर हो सकती है ? जी हां हो सकती है ।
एक्शन, जिसको सिर्फ बड़े परदे पर ही महसूस किया जा सकता है, इस मिथक को बड़े ही आसानी से लेखक साहब ने जब्त कर के निर्माण किया है "चौसर"का । इस उपन्यास को पढ़ने के बाद आप अपनी भुजाएं फड़कती हुई महसूस करें तो कोई ताज्जुब नहीं । थ्रिलर और एक्शन का अनुपम मिश्रण महसूस करने के लिए इस उपन्यास को पढ़ें ।
कहानी बिल्कुल फ्रेश है । एक कंपनी की एक गाड़ी जिसमे कंपनी के बहुत से कर्मचारी अपनी छुट्टियां बिताने,तफरीह के वास्ते सवार होते है । अगले दिन गाड़ी के साथ साथ सभी कर्मचारी 'अंतर्ध्यान ' हो जाते हैं । बस यही से शुरू होता है एक्शन पैक्ड रोमांच । उपन्यास के हर पेज पर आपके रोमांच की सीमा बढ़ती चली जायेगी । बस आपको एक काम करना है कि इस उपन्यास को ध्यान से पढ़ना है क्योंकि इस उपन्यास में पात्र चरित्र थोड़े ज्यादा है इसलिए आपको कहानी के साथ साथ चलना है । देशभक्ति, राजनीति, षड्यंत्र,मजबूरी,कूटीनिति, शठे शाठ्यम समाचरेत् ,आदि अनेक विधाओं से गुजरते हुए यह उपन्यास आपको नम आंखों के साथ बहुत कुछ सोचने समझने के लिए छोड़कर तृप्त कर देगा ।
अगर आप प्रचलित श्रेणी के थ्रिलर उपन्यासों से बेजार हो चुके हैं तो आपको मौका है अपने सारे हिसाब बराबर करने का , अभी पढ़ना शुरू कीजिए "चौसर" । उपन्यास समाप्त होते होते अपनी भुजाएं खुद ब खुद फडकती महसूस होंगी। उपन्यासों में 'ट्विस्ट ' खोजने वालों को इस उपन्यास के बाद चाह होगी सिर्फ और सिर्फ रोमांच की ।
लेखक महोदय को इस हाहाकारी शाहकार के लिए अनगिनत धन्यवाद । आपकी आगामी रचना के लिए अभी से इंतजार करता हुआ लेखक का एक उन्मादी पाठक ।