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Wednesday, May 15, 2024

Goonga Aasman (गूंगा आसमान) : Nasira Sharma (नासिरा शर्मा)

 पुस्तक : गूंगा आसमान ( कहानी संग्रह) 

लेखिका : नासिरा शर्मा
प्रकाशक : वाग्देवी प्रकाशन, विनायक शिखर, पॉलिटेक्निक कॉलेज के पास, बीकानेर
पुस्तक मूल्य : ₹120
पृष्ठ संख्या :160
ISBN NO. 81-85127-87-5

नासिरा शर्मा
नासिरा शर्मा में कथा कहने की जन्मजात प्रतिभा दिखाई देती है। उनके पास अनुभव की कोई कमी नहीं है, अनुभूतियों का भंडार है। अपने पात्रों का गहरा विश्लेषण करने की क्षमता है। शैली बहुत रंवा -दवां, भाषा सरल, सुलभ, प्रवहमान है। उसमें काव्य का रस है ।          (उपेंद्रनाथ अश्क)

गूंगा आसमान  प्रख्यात लेखिका नासिरा शर्मा का चर्चित कथा संचयन है । जिसमें उनकी 12 कहानियां संकलित की गई है । जिसमें खुशबू का रंग, सरहद के इस पार, गूंगा आसमान, यहूदी सरगर्दान, जड़ें, काला सूरज, तीसरा मोर्चा, इमाम साहब, ततैया, मेरा घर कहां? नई हुकूमत और इंसानी नस्ल  कहानियाँ संकलित की गई हैं । इस ब्लॉग में कहानी संग्रह की तीन कहानियों की बात करूँगा क्योंकि सभी कहानियों पर एक ब्लॉग में चर्चा नहीं की जा सकती है |

1. ख़ुशबू का रंग 

संग्रह की पहली कहानी खुशबू का रंग सच में ही एक लड़की के मन में उभरते हुए विभिन्न रंगों की दास्तान है|नायिका के माध्यम से नासिरा शर्मा ने एक मोहब्बत से भरे दिल में तन्हाई बेबसी बेकसी इंतजार और जुदाई जैसे विभिन्न रंग अपनी लेखनी से मानो पन्नों पर बिखरा दिए हो | नायिका की अपने प्रेमी से बिछड़ने का दर्द निम्न पंक्तियां में बेहद उभरकर सामने आता है .... मगर मैं वही उसी तरह खड़ी हूं, तुम्हारे लौटने की कोई खबर मुझ तक नहीं पहुंचती है जबकि बेजुबान परिंदे बिना पुराने ठिकानों को भूले लौट रहे हैं ,यह घोसले दुरुस्त करेंगे और रहना शुरू कर देंगे, मगर मैं उसी तरह लुटी तन्हा सी तश्ना रह जाऊंगी । (पृष्ठ 7)

इस कहानी में नायिका 'मैं '  के रूप में प्रस्तुत है और नायक 'तुम '  के रूप में उपस्थित है | दोनों का कोई नाम ना देकर भी नासिरा शर्मा ने दो प्रेमियों को जीवंत कर दिया है | नाम के नाम पर सिर्फ नायक की बहन शाहीन और नायक के पिता बाबा के रूप में उपस्थित हैं | इस कहानी में नासिरा शर्मा ने नायिका की मन स्थिति  का बड़ा ही शानदार चित्रण किया है | कहानी की नायिका का नायक के प्रति आसक्त होना उनके माता-पिता के रजामंदी के खिलाफ है, लेकिन मां-बाप की परवरिश नायिका को अपना निर्णय लेने की स्वतंत्रता प्रदान करती है | नायक एक विद्रोही विचारधारा के रूप में परिलक्षित हुआ है, जो हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने पर कैद में बंद है और पूरी कथा में इस विरह का चित्रण है | उदाहरण के तौर पर नायिका कहती है ....मोहब्बत का यह मौजूदा पुल जिस पर आज मैं तन्हा खड़ी हूं इसकी शुरुआत मेरी एक कहानी से हुई थी और यह कहानी हमारी दोस्ती के पुल की पहली निशानी थी इस कहानी में वह सब कुछ है जो मैं इतने सहज भाव से उगल गई जिसे तुम राख में दबी चिंगारी की तरह दिमाग में छुपाए झटपट आते हुए सुबह का इंतजार कर रहे थे... 

समय गुजरने के बाद नायक और नायिका के बीच में खतो-किताबत, जो उनके संपर्क का आखिरी सिलसिला था, वह भी बंद हो जाता है और उसे लगता है जैसे नायक अपने मुल्क के हुक्मरान की कैद में बंद है | नायक 10 साल से ज्यादा समय तक हुकूमत की कैद में है और नायिका उसका इंतजार करती है | फिर कुछ समय बाद नायक की बहन शाहीन का खत आता है जिसमें नायिका के लिए बुलावा है ..... तुम आ जाओ उसी कमरे में जिस की दीवारें मनुष्य ही हैं जिसकी छत पर जिंदगी की तरह है लुभावनी पर बुलावे जैसी रंग बिरंगी कंदील तंगी हैं जिसके कोने में किताबों से भरी मेज के पीछे रखी कुर्सी खाली है... कुर्सीका खाली होना इस बात का प्रतिबिंब है कि नायक अब इस दुनिया में नहीं है | अब सिर्फ उसके निशान बाकी हैं | नायिका नायक से तो नहीं मिल पाती लेकिन उसकी कब्र पर वह शाहीन और बाबा के साथ पहुंचती है .... और मैं इस तरह से तुम तक चलती गई जैसे मुझे तुम्हारे गले में जयमाला डालनी हो शर्म की जगह है मैं गम से निढाल आंसुओं के सैलाब को चीरती बढ़ रही थी तुमसे मेरी यह दूसरी मुलाकात थी तुम मनो मिट्टी के बोझ से दबे हुए थे और मैं बिना मरे ही अंधेरे में छटपटाती रही हूं.. नायक का अंतिम पत्र नायिका उसकी कब्र के पास बैठकर पढ़ती है .. इस घटना को कहानी का अंत समझकर उदास मत होना, अभी इस दास्तान को मंजिल तक पहुंचने के लिए बहुत रंग चाहिए ,जानती हो तुम्हें भी रंग भरना है इस दास्तान का सफर लंबा जरूर है मगर अंतहीन नहीं ।

2. सरहद के इस पार
इस सकलन की दूसरी कहानी सरहद के इस पार  है | इस कहानी का नायक रेहान है, जो मानसिक रूप से विक्षिप्त है | उसके इस पागलपन की हालात के पीछे उसकी एक असफल मोहब्बत की दास्तान है, जिसमें वह सुरैया नाम की लड़की से मोहब्बत करता है | यहां रेहान अपनी मोहब्बत को अपनी बेरोजगारी की एवज में हार जाता है और उसका असर उसके दिमाग पर पड़ता है | रेहान की मानसिक विक्षिप्तता की हालत में नासिरा शर्मा ने आदमी की कुछ कमजोरियों पर प्रहार किया है जिसमें सांप्रदायिकता और औरत को लगातार दोयम दर्जे के अंदर बदलने की इच्छा का चित्रण है | कहानी के अंत में रेहान अपनी जान से हाथ धो बैठता है पर इस कहानी में दिखाया है कि रेहान पागल होकर अपने आपको बेशक भूल जाता है पर इंसानियत को नहीं भूलता | जिसकी मिसाल वह हिंदू लड़की को बचा कर देता है, जिसे उसके मोहल्ले के कुछ लोग पकड़ कर ले आते हैं और शायद वही अंत में उसकी मौत का कारण बनते हैं | हिंदू-मुस्लिम दंगों के ऊपर नासिरा शर्मा की यह पंक्तियां मुझे बड़ी पसंद आई... अंग्रेजों ने हमें फसाद की शक्ल में पाकिस्तान तो उसे में दिया है और हम उस जख्म को जब तक जिएंगे पालते रहेंगे करें भी क्या कर ही कुछ नहीं सकते हैं अपाहिज जो ठहरे (पेज नंबर 32) अंत में नासिर शरमा के द्वारा ये सवाल उठाना की क्या सुरैया घुन थी .. मोहब्बत के ऊपर एक कटाक्ष है |

3. गूंगा आसमान
इस संकलन की तीसरी कहानी गूंगा आसमान है जो इस संकलन के प्रतिनिधि कहानी है | इस कहानी का नायक फरशीद  है जबकि उसकी पत्नी का नाम मैहरअंगीज है |फरशीद अपनी पुलिसिया ताकत के दम पर तीन और औरतों माहपारा, दिलाराम और शबनूर को उठाकर अपने घर में कैद कर लेता है | मेहरअंगीज फरशीद से इल्तजा करती है....  खुदा ने बहुत दिया है | इन मासूम परिंदों को उड़ा दो| यह गुनाह है, दीन धर्म इसकी इजाजत  नहीं देता है | लेकिन फरशीद उसकी एक नहीं सुनता और अपना मर्दाना जुल्म उन चार औरतों पर जारी रखता है | लेकिन मेहरअंगीज उन बेबस औरतों को घर से निकालने की ठान लेती है | वह शहर में  बाहर जाती है और उन लड़कियों को बाहर निकालने की योजना अपने मायके के परिवार वालों के साथ मिलकर बनाती है और उनको फरशीद के पिंजरे से आजाद कर देती है, लेकिन फरशीद उल्टा मेहरअंगीज को अपनी पुलिसिया ताकत की वजह से गुनहगार साबित कर उसे अपने ही घर में नजर बंद कर देता है | अब मेहर अंगेज उसी घर की कैदी बन जाती है जहां की वह मालकिन होती है | कहानी के अंत में कुछ इस तरह उसकी बेबसी उभरकर सामने आती है... वह बेबस ही  खड़ी रह गई | पुलिस की गाड़ी फरशीद और उस औरत को लेकर तेजी से निकल गई | मेहरअंगीज के होंठ सब कुछ जानने के बाद उस औरत की वकालत में खुल ना सके | फिलहाल खुलते भी तो अब उसका विश्वास कौन करता  |उसने जंगले से बाहर झांका, जहां गूंगे आसमान पर सूरज का गोला निकलने वाला था |(पेज नंबर 50)

मेरी राय:- खुश्बू का रंग एक मनोवैज्ञानिक रचना है जिसमें नायक का अस्तित्व सिर्फ उसकी यादों में है | नायक का चरित्र नायिका की यादों के सहारे ही गढा गया है | कहानी का ताना बाना इरान/ ईराक की परिस्थितियों में बुना गया है | ये कहानी स्वयं से संवाद (monologue) विधा में लिखी गई है जिसमें नायक की बहन अंत में नायिका से मिलती है |

दूसरी कहानी सरहद के इस पार  में नायक रेहान अपनी मोहब्बत के चलते मानसिक संतुलन खो बैठता है लेकिन उसमें इंसानियत बाकी चरित्रों से ज्यादा है गोया कि होश में रहना आदमी को ज्यादा जालिम बना देता है | कहानी के अंत में रेहान का जान से चले जाना थोडा अखरा | नायिका विवाह के बाद उस पार है और इस पार रेहान के साथ क्या बीतती है इसी को सार्थक करता हुआ शीर्षक है सरहद के उस पार |

तीसरी कहानी गूंगा आसमान  संग्रह की शीर्षक कहानी है और अपने अंदर एक स्त्री की साड़ी विवशताएँ और भावनाएं समेटे है | पुरुष सत्ता द्वारा लादी गई सारी बेड़ियों के बावजूद भी एक स्त्री के संघर्ष का दस्तावेज है गूंगा आसमान | मेहरअंगीज का फरशीद के साथ संघर्ष कोई उसका व्यक्तिगत संघर्ष नहीं है पर वह फरशीद द्वारा जबरन कैद की गई लड़कियों के लिए है | इस कहानी की पृष्ठभूमि भी ईराक / इरान के है पर मेहरअंगीज का संघर्ष सार्वभौमिक है | 
नासिरा जी की कहानियों में भाव सम्प्रेष्ण का इतना सघन और इतनी तरलता से मौजूद है कि आप उसमें सहज भाव से कभी डूबने लगते हैं और कभी तैरते रहते है | उनके द्वारा प्रयुक्त भाषा व् प्रतिबिम्ब बरबस ही दिमाग में पैबस्त हो जाते हैं और दिल में उतर जाते हैं | उनकी कहानियाँ आत्मसात होने में वक्त लेती है और कई दिनों तक पाठक के आसपास तैरती रहती हैं | कम से कम मैं तो उनकी कहानियां लगातार नहीं पढ़ पाया पर इसका कारण यह है कि मैं पढना नहीं चाहता था क्योंकि उनके शब्द , भावनाएं और चरित्र कई देर तक आँखों के सामने साकार रहे और इसीलिए इस ब्लॉग में तीन ही कहानियों की चर्चा की है |
अगर आपने मेरी तरह इससे पहले नहीं पढ़ा है तो जरूर पढ़ें 


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