Wednesday, September 23, 2020

Amrita-Imroz: Uma Trilok

 मेरे इमरोज़..

तेरा - मेरा स्नेह - जिसका कोई सामाजिक नाम नहीं, फिर भी हम साथ रहते हैं हमेशा एक - दूजे के सोच तले.. नहीं देना हमें अपने खूबसूरत भावों को किसी रिश्ते का नाम..!! 
बस यूँ ही अपनी जिंदगी के चर्ख (आसमान ) पर चांदनी बिखरी रहे हमेशा..
..और खुला रहे सदा क़मर ( चांद ) का दरवाज़ा रौशनी लिए..
तेरे भावों के ये महकते से अहसास के फूल बड़ी कशिश भरे जतन से दिल के शजर ( पेड़ ) में रखूंगी..!! 
..और यूं ही रहेंगे हम चिर साथ - साथ, किसी सामाजिक मुहर के बंधन से परे.. 
मैं और मेरा प्यारा सा इमरोज..
"तेरी अमृता"
अमृता इमरोज  पेंग्विन बुक्स द्वारा प्रकाशित और उमा त्रिलोक द्वारा लिखित एक पुस्तक है जिसमें हिंदी एवं पंजाबी साहित्य की मूर्धन्य लेखिका अमृता और इमरोज के अंतिम दिनों का चित्रण है। अमृता प्रीतम हिंदी और पंजाबी साहित्य की एक ऐसी दीप्तिमान लेखिका और कवयित्री रही है जो किसी परिचय की मोहताज नहीं। उनका जीवन उनके लेखन की तरह अपने वक्त से आगे का जीवन रहा जिसमें दो छोर साहिर लुधियानवी और इमरोज के रूप में उपस्थित रहे और अमृता साहिर लुधियानवी की तरफ अपना झुकाव सारी जिंदगी सारी दुनिया के सामने प्रदर्शित करती रही लेकिन साहिर के जाने के बाद उन्हें ठिकाना मिला इमरोज के पास।
उमा त्रिलोक कि यह पुस्तक अमृता प्रीतम और इमरोज के बीच एक अनोखे और प्रगाढ़ रिश्ते की विवेचना करती हुई आगे बढ़ती है अमृता इमरोज में अमृता प्रीतम के हौज खास स्थित घर में बिताए गए उनके तीन मंजिल का घर और इमरोज द्वारा पेंटिंग्स की जीवंत उपस्थिति जी का वर्णन है उमा बताती हैं कि पूरे घर में अमृता की पेंटिंग्स लगी हुई थी जिसमें उनका अलग अंदाज और अलग शख्सियत उजागर होती थी। यह तस्वीरें इमरोज के मस्तिष्क और रूह पर अमृता प्रीतम की छवि को दर्शाती थी जैसे कोई जिस्म अपनी रूह के साथ मिलकर एकाकार हो गया हो और कैनवस के रंगीन पन्नों पर उभर आई हो। इस पुस्तक में अमृता प्रीतम खुद अपने ही स्वरूप में मौजूद हैं जो कमजोर काया होने के बावजूद भी सशक्त साहित्यकार की उपस्थिति दर्शाती हैं। इमरोज के बारे में अमृता खुद ही बताती हैं कि "वे चांद की परछाइयां मैं से रात के अंधेरे में उतरे और उनके सपनों में चले आए।" इमरोज़ अमृता को माजा के नाम से बुलाते हैं जो उन्होंने एक स्पेनिश नॉवेल की हीरोइन के ऊपर रखा था।
अमृता प्रीतम अपने अंतिम सांसे चाहे दिल्ली में ली हो पर उनकी किताबों में पंजाब महकता रहा है हमेशा अपना जीवन उन्होंने दर्द के प्रतिरूप के तरह माना और उसे इन शब्दों में स्वीकार किया है
"एक दर्द था 
जो सिगरेट की तरह मैंने चुपचाप पिया सिर्फ कुछ नज्में है 
जो सिगरेट से राख की तरह मैंने झाड़ी है "
इमरोज़ के बारे में अमृता जी बताती हैं कि उन्हें  बीस साल तक लगातार हर दूसरे तीसरे दिन एक सपना दिखाई देता रहा जिसमे एक तरफ जंगल और दूसरी तरफ दरिया था और खिड़की के पास एक व्यक्ति कैनवस पर पेंटिंग कर रहा होता था पूरे 20 साल ऐसा होता रहा लेकिन इमरोज के मिलने के बाद उन्हें सपना कभी नहीं आया जाहिर था कि उनके जीवन में जो दरिया था वह इमरोज़ था।
साहिर लुधियानवी और अमृता के रिश्ते के बारे में  उमा जी बताती है कि
चौदह साल तक अमृता उसकी छाया में चलती रही दोनों के बीच एक मूक वार्तालाप चलता रहा मैं आता अमृता को अपनी नज्में पकड़ा कर चला जाता कई बार तो अमृता की गली की पान की दुकान तक ही आता पान खाता सोडा पीता और अमृता की खिड़की की तरफ एक बार देख कर लौट जाता
                                               पृष्ठ संख्या-93
प्यार में अपनी पहचान को खोना अमृता के लिए कोई प्यार नहीं था। क्योंकि शायद वे मानती थी प्यार किसी व्यक्ति विशिष्ट के अस्तित्व पर आधारित होता है अन्यथा ये आत्म मुग्ध स्थिति के सिवा कुछ नहीं।वे सीधे सपाट शब्दों में कहती हैं:-
चादर फट जाए तो टाँकी लगांवा
अम्बर फटे क्या सीना
खाविंद मरे मैं और करां
मरे आशिक तो कैसा जीना
जब इमरोज़ से साहिर के बारे में पूछा गया तो उन्होंने साफ मान लिया कि मैंने बिना किसी अहम, तर्क-वितर्क और हिसाब किताब के बिना इसे सच मान लिया। जब कोई सच को समझ लेता है तो सहज हो जाता है। सहज भाव से जीना बड़ा सरल है।
उमा त्रिलोक की लिखी किताब एक जीवंत दस्तावेज है जो अमृता प्रीतम के अंतिम समय के अंतराल का सजीव चित्रण करता है। पढ़ते हुए लगता है कि जैसे हम उनके साथ ही हों। अभी साथ के कमरे से इमरोज आ जाएंगे हाथ में प्याला लिये हुए।


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