मिट्टी दे टिब्बे : गाँव की खुशबू , इश्क के जज़्बात और मिट्टी दे टिब्बे
गाना : मिट्टी दे टिब्बे
गायक : काका
गीतकार : काका
संगीतकार : काका
'मिट्टी दे टिब्बे' पंजाबी पॉप सिंगर काका के द्वारा गाया गया नया गाना है । अपनी गाड़ी में एक दिन पंजाबी पॉप म्यूजिक की प्लेलिस्ट सुनते हुए अचानक यह गाना बज उठा । मध्यम सी बीट के साथ यह गाना स्टार्ट हुआ और मैं भी गाना सुनने लगा । मिट्टी दे टिब्बे दे सज्जे पासे ... काका की आवाज गाड़ी में गूंजने लगी । मुझे लगा जैसे कोई इश्क में डूबा हुआ आदमी मेरे पास आ बैठा है और मुझे यह गाना सुना रहा है ।
एक के बाद एक गीत की पंक्तियाँ कानों में उतरती चली गई । कोई भी पंक्ति दोबारा नहीं गाई गयी । जब तक दिमाग इस तरफ सक्रिय हुआ तब तक एक माहौल बन चुका था और मुझे ऐसा लगा जैसे मैं काके के साथ मिट्टी के टिब्बे पर बैठ कर यह गाना सुन रहा हूँ । पूरा गाना सुनने के बाद एक मुद्दत के बाद मैंने गाना फिर से सुना । अब की बार दिमाग के साथ दिल भी गाना सुन रहा था । पहले से ज्यादा आनंद आया ।
किसी गाने में किसी श्रोता को आखिर क्या चाहिए ? मेरे ख्याल से यह सुनने वाले के अलग-अलग मूढ़ पर निर्भर करता है ।
अगर आप किसी गाने में सुकून ढूँढना चाहते हैं तो वह इस गाने में मौजूद है ।
अगर आप एक मधुर संगीत सुनना चाहते हैं तो वह इसमें मौजूद है । एक अरसे के बाद राइफला, दुनाली, दारू,जिप्सी, पैग-शेग की महिमा मंडन से हटकर कोई पंजाबी गाना सुनने को मिला है जिससे पंजाब की सौंधी मिट्टी की खुशबू आती है जैसी कभी पुराने जमाने में आशा सिंह मस्ताना के गानों में आती थी ।
'काली तेरी गुत ते प्रांदा तेरा लाल नी, रूप दिये रानिए तू प्रांदे नु संभाल नी...'
मेरे ख्याल से आपको याद आ गया होगा । अब काके के गाने पर आते हैं । इस गाने की बहुत सी पंक्तियाँ हैं जो हमें पंजाब के उस ग्रामीण परिवेश में ले जाती है जिससे शायद वहाँ के लोग ही दूर होने लग गए हैं ।
'तू मेरे रस्ते नु तकदी ही रह गई, उब्बल के चा तेरी चूल्हे च पाई गई ।
मेरा पता तेरी सहेली नु पता ए, तू तां कमलिए नी तकदी ही रह गई ।।
तांगा उडीके तू बोहड़ दे कोले
तूं तां चौबारे चो पर्दा हटाके
चोरी चोरी मेनू देखदी ऐ
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