आज श्री देवेन्द्र पाण्डेय जी का उपन्यास बाली: कैलाश रहस्य पढ़ कर समाप्त किया।
बाली: युग युगांतर प्रतिशोध इस सीरीज का उनका पहला उपन्यास था जो मैंने प्रकाशन के काफी समय बाद पढ़ा था लेकिन अबकी बार मैंने वो गलती नहीं की।
पौराणिक मिथकों और इतिहास को आधार बनाकर उपन्यासकार श्री देवेन्द्र पाण्डेय जी ने बाली के रूप में एक सुपर हीरो या महामानव की परिकल्पना की है, जो वास्तव में अद्भुत है।
बाली: युग युगांतर प्रतिशोध में भगवान राम के जीवन काल के समय के समानांतर घटनाएँ घटती हैं तो बाली: कैलाश रहस्य में महादेव सूक्ष्म रूप में कथा क्रम में समाये हैं। एक पुरातन रहस्य को कहानी में बडी बारीकी से पिरोया गया है और जब वो मिथकीय चरित्र गतिमान होता है तो कहर बरपा कर देता है।
इस बार बाली का मुकाबला जिनसे हैं वो पहले उपन्यास से भी कई दर्जे ऊपर है। विस्तार से चर्चा करना दूसरे पढ़ने वालों के लिए स्पॉइलर हो सकता है इसीलिए बस इतना ही कहूंगा कि आप चकित रह जाएंगे।
कथानक का अंत मुझे बेहद मनोरंजक लगा और किसी भी विदेशी एक्शन फिल्मों को मात देता लगा। अगर कोई पाठक विशुद्ध और स्तरीय मनोरंजन चाहता है तो बाली से बेहतर शायद ही कोई हो।
इस श्रृंखला को पठनीय के साथ संग्रहणीय की श्रेणी में भी रखना चाहूंगा क्योंकि एक बार में प्यास नहीं बुझेगी।
कहानी अपने आप में सम्पूर्ण है पर पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त। बाली से अगली मुलाकात का बेसब्री से इंतजार रहेगा।
इस मनोरंजक कथानक के लिए देवेन्द्र पांडेय जी बहुत बहुत धन्यवाद और भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएं