Saturday, December 25, 2021

Janpriya Lekhak Om Parkash Sharma: Ruk Jao Nisha

 

रुक जाओ निशा : एक पाठक की प्रतिक्रिया

उपन्यास : रुक जाओ निशा

लेखक : जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा

उपन्यास विधा : सामाजिक

प्रकाशक : नीलम जासूस कार्यालय, रोहिणी, सेक्टर-8, नई दिल्ली

पृष्ठ : 212

MRP: 225/-

जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा 

25 दिसंबर, 1924 को जन्में श्री ओम प्रकाश शर्मा जी उपन्यास जगत में जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के नाम से जाने जाते हैं । उन्हें अपने समय में जो प्रसिद्धि मिली, वह उनके द्वारा रचे गए विराट साहित्य का ही परिणाम थी और वह आज भी यथावत है । तथाकथित साहित्य मनीषियों द्वारा उनको लुगदी साहित्य या आज के लोकप्रिय साहित्य की परिधि में बांध देने का प्रयास उनके द्वारा रचे गए कथा संसार के परिप्रेक्ष्य में कहीं से भी न्यायोचित या तर्कसंगत नहीं हैं । उनके द्वारा रचित चार सौ से अधिक उपन्यासों का विविध संसार उनकी गौरवशाली साहित्य यात्रा की गवाही देता है ।

आज के परिवेश में उपन्यास पढ़ने और पढ़ाने की परंपरा अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए, मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से सर्वसुलभ हो चुके मायाजाल से, निर्णायक संघर्ष के दौर में पहुँच चुकी है । इस दौर में सर्वश्री ओम प्रकाश शर्मा, वेद प्रकाश कम्बोज, गुरुदत्त, रोशन लाल सुरीरवाला, कुमार कश्यप जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों के अनुपलब्ध हो चुके उपन्यासों को पुनःप्रकाशित करने का बीड़ा नीलम जासूस कार्यालय ने उठाया है । ओमप्रकाश शर्मा जी के अनुपलब्ध उपन्यास नीलम जासूस कार्यालय के प्रयासों से पाठकों को उपलब्ध होने लगे हैं जिससे पाठकों की नई पीढ़ी उनके रचनाकर्म से भली-भांति परिचित हो सके । इसी कारण मैं भी उनके उपन्यासों के संसर्ग का लाभ उठा रहा हूँ ।

लोकप्रिय साहित्य में श्री ओम प्रकाश शर्मा जी ने कुछ ऐसे किरदारों की रचना की है जो पाठकों में बहुत लोकप्रिय रहे जैसे जगत, गोपली, चक्रम, बंदूक सिंह इत्यादि । हालांकि उनके अधिकतर उपन्यास जासूसी क्षेत्र में  रहस्य और रोमांच का मनमोहक  जाल बुनते हैं जिसमें पाठक एक अलग ही दुनिया में पहुँच जाते हैं लेकिन ओम प्रकाश शर्मा जी के ऐतिहासिक और सामाजिक उपन्यास भी उसी ठोस धरातल पर खड़े नजर आते हैं जिसकी बुनियाद आचार्यचतुरसेन शास्त्री, शरत चंदर या बंकिम चंदर के उपन्यासों द्वारा रखी गई थी । मेरा ऐसा कहना कुछ उपन्यास प्रेमियों को अतिशयोक्ति पूर्ण लग सकता है परंतु जब हम प्रिया, धड़कनें, भाभी, एक रात, पी कहाँ और रुक जाओ निशा को पढ़ते हैं तो हमें पाठक के रूप में उनके सामाजिक सरोकारों से साक्षात्कार करवाते उपन्यासों के विविध कथा-संसार के दर्शन होते हैं ।

उनके सामाजिक उपन्यासों में तत्कालीन सामाजिक परिवेश का सुंदर चित्रण देखने को मिलता है । रुक जाओ निशा को जब मैं पढ़ रहा था तो मैं यकीन ही नहीं कर सका कि मैं शरत चंदर जी को पढ़ रहा हूँ या ओम प्रकाश शर्मा जी को । रुक जाओ निशा का घटनाक्रम सत्तर-अस्सी के दशक में घटित होता है जिसकी पृष्ठभूमि में बंगाली परिवेश के सामाजिक सरोकारों को दर्शाया गया है ।


रुक जाओ निशा 

रुक जाओ निशा की कहानी निशा नाम की युवती के इर्दगिर्द घूमती है, जो बीए पास है और उसके माता- पिता मोहनकान्त भादुड़ी और रजनी का देहांत हो चुका है । उसके बड़े भाई निशिकांत पर उसकी परवरिश का जिम्मा है । निशा की मुलाकात अमित सान्याल से होती है जिसकी परिणति उनके विवाह में होती है । दुर्भाग्य से अमित एक जानलेवा बीमारी का शिकार होकर कालकवलित हो जाता है और निशा का जीवन एक अंधकार से भर जाता है ।

अमित की कंपनी का मैनेजर प्रथमेश सावंत एक प्रगतिशील सोच का व्यक्ति है जो निशा को अमित की जगह नौकरी देना चाहता है । इस प्रकरण में ओम प्रकाश शर्मा जी ने संस्कृति के नाम पर फैली रूढ़िवादिता और लालच पर व्यंग्यात्मक प्रहार किया है जब पंचानन घोष अनिल से सवाल करते है ... “क्या कहते हो अनिल ! तुम्हारा चलन क्या संसार से अलग है ? क्या बेचारी बहू की जिंदगी खराब करोगे।” इस प्रश्न के उत्तर में अनिल कहता है, “काका, जाति नियम भी तो होता है माँ पंद्रह साल से काशी में है । क्या गाँव की और विधवायें भी काशी गई है ?”

ससुराल से परित्यक्त होकर, संस्कृति की आड़ में और संस्कारों के नाम पर अमित के परिवार से उसे काशीवास पर भेज दिया जाता है । अमित का मित्र परमानंद चटर्जी भी उसी ट्रेन में कलकत्ता से वाराणसी जा रहा होता है जिसमें निशा को तीन सौ रुपए देकर सवार करवाया जाता है । परम निराश्रय निशा को अपने घर लेकर जाता है जहां उसकी विधवा माँ सुखदा निशा को अपनी शरण में ले लेती है ।

रुक जाओ निशा में इसके बाद वाराणसी में उस समय फैली सामाजिक कुरीतियों पर विस्तार से चिंतन और मनन किया गया है । सुखदा और परम जहां प्रगतिशील सोच का प्रतिनिधित्व करते है वही ढोंगी आनंद स्वामी और कालीपद चटर्जी रूढ़िवादिता के पक्षधर हैं । सीआईडी इंस्पेक्टर के रूप में लटकन महाराज निशा की जिंदगी में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करते है । लेडी सब-इंस्पेक्टर प्रभा के सहयोग से लटकन महाराज, काशीवास की जिद पर अड़ी निशा को, वाराणसी के  घाटों पर फैले व्यभिचार से अवगत करवाते हैं ।

ओम प्रकाश शर्मा जी ने जहां पर नायिका के रूप में अपनी जिंदगी से विमुख हो चुकी निशा का पात्र गढ़ा है जो मानसिक रूप से सामाजिक रूढ़ियों के प्रति आत्मसमर्पण कर चुकी है, वहीं सुखदा, प्रभा मिश्रा, प्रिया, सुचित्रा, अर्चना श्रीवास्तव के रूप में ऐसे किरदार गढ़ें हैं जिनके जीवन में हुई उथल-पुथल सी निशा को जीवन के विविध पहलुओं को समझने में मदद मिलती है ।

रुक जाओ निशा में ओम प्रकाश शर्मा जी ने विधवा पुनर्विवाह के लिए धर्म और आस्था में जारी कशमकश का बड़ा संतुलित विवेचन किया है । इस उपन्यास में अपनी सुविधा और उपभोग के लिए धार्मिक मान्यताओं और रूढ़िवादी विचारधारा के उपयोग और आमजन को उसपर चलने की बाध्यताओं का पुरजोर विरोध किया गया है । उपन्यास के अंत में निशा अपने जीवन से अंधकार का खात्मा कर एक नए रास्ते पर चलने का निर्णय लेती है या नहीं, यही प्रश्न परम के लिए एक यक्षप्रश्न के रूप में उपस्थित होता है जिसका उत्तर उसे तब मिलता है जब वह नायिका को कहता है रुक जाओ निशा ...

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

 समीक्षक : जितेंद्र नाथ

प्रकाशित रचनाएँ: राख़ (उपन्यास), पैसा ये पैसा (अनुवाद), खाली हाथ (अनुवाद), मौन किनारे एवं आईना (कविता संग्रह)            

    नोट : यह समीक्षा नीलम जासूस कार्यालय द्वारा प्रकाशित तहक़ीक़ात पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है 

 

Monday, November 1, 2021

Aaina: A Review by Sh. Dev Dutt Dev

 आईना: काव्य संग्रह

लेखक: जितेन्द्र नाथ

प्रकाशन: समदर्शी प्रकाशन, मेरठ

समीक्षा: श्री देव दत्त 'देव'

आईना: जितेन्द्रनाथ


"मुक्त छंद कविताएं ,मुक्तक ,गीत और ग़ज़ल की शक्ल में ढलती गीतिकाओं  से सुसज्जित 'आईना' काव्य संग्रह सचमुच में समाज का आईना है जिसमें वर्तमान समाज का प्रतिबिंब उभरकर सामने आता है जो कवि कर्म की गरिमा को रेखांकित करता है तथा संग्रह में चिंतन की अनेक धाराओं के माध्यम से रचनाकार ने अपने चिंतन के फलक की विशालता और उसकी प्रौढता को सफलता पूर्वक अभिव्यक्ति प्रदान की  हैं, मानव मन का विश्लेषण और सामाजिक विसंगतियों को व्यंजित करता काव्य संग्रह आईना केवल पाठक को बांधता ही नहीं अपितु चिंतन के लिए बाध्य भी करता है यह सब रचनाकार के कौशल का प्रतिफल है कवि ने चारों ओर घटित प्रत्येक घटनाक्रम का सूक्ष्म अवलोकन के उपरांत ही अनुभूति को अभिव्यक्ति प्रदान की है रचनाकार निरंतर बढ़ती भौतिकता के दुष्प्रभाव से भलीभांति परिचित है भौतिकता की चमक दमक ने हमारी परंपरागत जीवन शैली को प्रभावित किया है जिसके कारण घुटन सी महसूस होती है इसलिए कवि भौतिकता के उजाले से  दूर हटकर अंतहीन दौड़ धूप से परे शांति पूर्वक जीवन व्यतीत करने का पक्षधर है-

परवाज छोड़ परिंदे शजरों पर जा बैठे 

अंधेरों से नहीं ये उजालों के सताए हुए हैं

            समाज में निरंतर बढ़ती संवेदन शून्यता के कारण संवेदनशील रचनाकार का चिंतित होना स्वाभाविक है आए दिन हर मोड़ पर ऐसी घटनाएं देखने और सुनने को खूब मिलती हैं जो सभ्य समाज के लिए कोई शुभ संकेत नहीं हैं इन्हीं के कारण समाज का स्वरूप रुग्ण हुआ है कवि ने    समाज  में निरंतर बढ़ती  रुग्णता को भी प्रभावशाली ढंग से रेखांकित किया है

 जिंदा था तो कितने फासले थे दरमियां

 मौत आई तो सब कितने करीब लगते हैं 

         भौतिकता के प्रभाव के कारण बड़ी 

स्पर्धा और स्पर्धा के अतिरेक के कारण ईर्ष्या भाव का बढ़ना और दूसरों को मिटाने की सोचना दुर्भाग्यपूर्ण चिंतन है ऐसी स्थिति में कविवर स्नेह समरसता और सौहार्द को बल देने के उद्देश्य से संगठित होने की बात करता है ताकि समतामूलक सिद्धांत को स्थापित किया जा सके 

उंगलियां काट कर सब बराबर करने निकले हैं 

बंद मुट्ठी में भी एक बात है यह बात कौन करे 

         संक्षेप में बहुत ही प्रभावशाली और उत्तम सृजन के लिए मैं बंधुवर जितेंद्रनाथ को  इस उम्मीद के साथ हार्दिक बधाई  देता हूँ कि निरंतर साहित्य साधना करते हुए साहित्य को समृद्ध करने में अविस्मरणीय योगदान देते रहेंगे।

अनंत शुभकामनाएं

          देवदत्त देव

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

 आईना-काव्य संग्रह समदर्शी प्रकाशन, अमेज़न और flipkart पर उपलब्ध:

https://www.amazon.in/dp/B097Z1JHQN/ref=cm_sw_r_cp_apa_glt_fabc_Y22KJF47VN1GTVNVYAPC

और

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देव दत्त 'देव'जी

Friday, September 24, 2021

My first murder case : Jaydev Chavria

उपन्यास : माय फ़र्स्ट मर्डर केस
लेखक : जयदेव चावरिया
प्रकाशक: बूकेमिस्ट (सूरज पॉकेट बुक्स की सहयोगी संस्था)
पृष्ठ संख्या: 152
मूल्य: 220/- (MRP) डिस्काउंट पर उपलब्ध 
पुस्तक मिलने का स्थान : सूरज पॉकेट बुक्स  के स्टोर पर (online) और amazon पर 

'माय फ़र्स्ट मर्डर केस' श्री जयदेव चावरिया का लिखा हुआ पहला उपन्यास है जिसे सूरज पॉकेट बुक्स की सहयोगी संस्था 'बूकेमिस्ट' के बैनर तले प्रकाशित किया गया है । जयदेव जी ने अपने लेखकीय में बताया है कि किस तरह से उनके परिवार से ही पठन -पाठन का शौक उन तक पहुंचा । वह कहते हैं कि लगभग एक दशक तक उन्होने पाठक के तौर पर विभिन्न लेखकों के उपन्यास पढे और उनका प्रभाव उन पर पड़ा । 
यदि कोई पाठक लंबे समय तक पढ़ता रहे तो उसके मन में कभी न कभी कुछ लिखने का ख्याल आ ही जाता है । जो व्यक्ति अपने आसपास की एवं स्वयं की वर्जनाओं को तोड़कर अपने स्वप्न को साकार करने की ठान लेता है तो वह अवश्य ही अपने मकसद में कामयाब होता है । जयदेव जी ने जैसे कि बताया भी है कि उनका एक व्हाटसएप ग्रुप है 'उपन्यास के दीवाने' जिसमें उपन्यासों की समीक्षा और बातें चलती रहती हैं । मैं स्वयं भी उस ग्रुप में सम्मिलित हूँ । उसी ग्रुप से प्रेरणा पाकर जयदेव जी ने अपने उपन्यास को पूरा करने की ठानी जिसमें वो कामयाब हुए हैं ।

My First Murder Case


माय फ़र्स्ट मर्डर केस :-
उपन्यास के पात्र: :
अशोक नन्दा, बलवंत नन्दा, विनय नन्दा,रॉकी, पूर्वी, ललिता, साक्षी, मोहिनी, जूली, घनश्याम, गणेश दत्त, इंस्पेक्टर नवनीश, जयदेव, अलीभाई, सोमदत्त इत्यादि ।

कथानक : 
उपन्यास की शुरुआत जूली और रॉकी की मुलाक़ात से होती है । राजनगर के ज्यूलरी शॉप के मालिक अशोक नन्दा का उसके घर में ही सोते हुए कत्ल हो जाता है । अशोक नन्दा के तीन बेटे बलवंत, विनय और रॉकी हैं । नन्दा के कत्ल की सुई उसके पूरे परिवार पर टिकी रहती है । इंस्पेक्टर नवनीश इस मामले की तहक़ीक़ात शुरू करता है लेकिन अशोक नन्दा की बेटी के प्रयासों के चलते इस कहानी में एंट्री होती है जासूस जयदेव की । इसके बाद की कहानी आप उपन्यास को पढ़कर ही जाने तो ज्यादा मजा आएगा ।

मेरी राय : 
जयदेव जी का यह पहला उपन्यास है और उनका पहला प्रयास अपने आप में सफल रहा है । कहानी में एक के बाद एक नए मोड आते है जो पाठक के अंदर रूचि को और सस्पेंस को बनाए रखते हैं । इंस्पेक्टर नवनीश और जासूस जयदेव के बीच समीकरण पल पल बदलते हैं जो एक कोतूहल जगाते हैं । इस बात का क्या कारण है...  इसके बारे में इस कहानी में कोई खुलासा लेखक ने नहीं किया है लेकिन इस बात के संकेत दिये हैं कि उनका अगला उपन्यास इस कथानक पर से पर्दा उठाएगा । यहाँ मैं एक बात साफ कर दूँ कि यह उपन्यास अपने आप में पूर्ण है । पाठकों को  इस उपन्यास की कहानी जानी-पहचानी लग सकती है लेकिन जयदेव जी कथानक को मजबूती से बांधे रखने में कामयाब रहें हैं । 
उपन्यासों की दुनियाँ के जादूगर श्री वेद प्रकाश शर्मा के लेखन का प्रभाव जयदेव जी की लेखनी और कहानी को बयान करने के अंदाज में नजर आता है और इस बात को वह स्वयं स्वीकार भी करते हैं । यह एक सबल पक्ष भी है लेकिन आगे इस लेखन क्षेत्र में उन्हें अपने पैंतरे भी आजमाने पड़ेंगे ।

जयदेव जी का पहला प्रयास है जिसमें प्रूफ-रीडिंग के मामले में कई कमियाँ रह गई हैं । कई जगह कुछ संवाद/पंक्तियाँ दोबारा छप गई हैं जिससे पाठकों की तन्मयता में बाधा पड़ती है । लेकिन मैं जानता हूँ कि यह (प्रूफ रीडिंग) एक मुश्किल काम होता है और हर लेखक को इससे दो-चार होना ही पड़ता है । 

उम्मीद है कि जयदेव जी वक्त के साथ-साथ अपने भाषाई पक्ष को भी मजबूत बनाते जाएंगे जिससे उनकी स्थिति उपन्यासों की दुनिया में निरंतर मजबूत होती चली जाएगी ।

इन बातों से इतर यह उपन्यास एक रोलर कोस्टर  राइड की तरह से है जिसमें कहानी के अनापेक्षित झटके पाठकों का मनोरंजन करने में पूरी तरह से सक्षम हैं ।      

Jaydev Chavria

  

Friday, September 10, 2021

Parkash Bharti: List of novel


उपन्यासकार प्रकाश भारती के उपन्यासों की सूची





 

Wednesday, June 9, 2021

Santosh Pathak : List of Novels

1 andekha khatra (अनदेखा खतरा)

2 akhri Shikar (आखिरी शिकार)

3 khatarnak sajish (खतरनाक साज़िश)

4 maut ki dustak (मौत की दस्तक)

5 katl ki paheli (कत्ल की पहेली)

6 10 June ki raat ( दस जून की रात)

7 hairatangej hatya (हैरतअंगेज हत्या)

8 kohima conspiracy (कोहिमा कॉन्सपिरेसी)

9 trap (ट्रैप)

10 catch me if you can (कैच मी इफ यू कैन)

11 murder in lockdown (मर्डर इन लोकड़ाउन)

12 the silent murder (द साइलेंट मर्डर)

13 inside job (इनसाइड जॉब)

14 Tandav (तांडव)

15 Prachand (प्रचण्ड)

16 Maya mi na ram (माया मिली न राम)

17 Vinash kaale (विनाशकाले)

18 Chalava (छलावा)

19 Jab nash manuj pe chaata hai (जब नाश मनुज पर छाता है)

20 Watchman secret of missing girl (सीक्रेट ऑफ मिसिंग गर्ल)

21 Watchman murder in room 108 (मर्डर इन रूम 108)

22 Pratighaat (प्रतिघात)

23 Right time to kill (राइट टाइम टू किल)

24 Swaaha (स्वाहा)

25 Dedh Shyaane (डेढ़ श्याने)

26 Swaha part-2

27 Swaha part-3

28 Andher nagri (अंधेर नगरी)

29. Kaun (कौन)

30. Kambakht (कमबख्त)

31. Gaddar (गद्दार)

32. Beat (बीट)

33. The scripted murder (द स्क्रिप्टेड मर्डर)

34. The perfect murder (द परफेक्ट मर्डर)

35. Nishachar (निशाचर)

36. Gunah Belazzat (गुनाह बेलज़्ज़त)










Tumhara Namvar : Namvar Singh

पुस्तक: तुम्हारा नामवर लेखक: नामवर सिंह संपादन: आशीष त्रिपाठी प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली आचार्य राम चन्द्र शुक्ल, राम विलास शर्मा, म...