Thursday, June 22, 2023

Tumhara Namvar : Namvar Singh

पुस्तक: तुम्हारा नामवर

लेखक: नामवर सिंह

संपादन: आशीष त्रिपाठी

प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली

आचार्य राम चन्द्र शुक्ल, राम विलास शर्मा, मैनेजर पाण्डेय और नामवर सिंह। 

हिंदी साहित्य की पगडंडियों पर आप चलते हैं तो इन नामों से आप जरूर सरोकार रखते होंगे। किसी जमाने में दूरदर्शन को हमने बेशक इडियट बॉक्स का नाम दिया होगा लेकिन आज के युग के स्मार्ट tv के सामने मुझे तो समझदार लगता है। उस पर प्रसारित होने वाले प्रोग्रामों के जरिये लोग उस वक्त के साहित्यकारों को सहज ही जान जाते थे।

 कमलेश्वर उस वक्त tv पर बड़ा जाना पहचाना चेहरा थे।उन्ही के किसी प्रोग्राम में नामवर सिंह को देखा था। अपनी वेशभूषा और नाम की वजह से वे तब से याद हैं। साहित्य आलोचना को नामवर सिंह जी ने एक नया आयाम दिया। उनके जाने के बाद उनके काम को समझना भी एक अनुभव है। 

उनकी इस पुस्तक 'तुम्हारा नामवर' में उनके लिखे पत्र हैं जो समय-समय पर विभिन्न सहित्यकार बंधुओं को लिखे गए हैं। उन संवादों को पढ़ना उस वक्त के इतिहास का साक्षी होना है। 

राजकमल प्रकाशन ने इस पुस्तक को प्रकाशित किया है। पुस्तक तीन खंडों में विभाजित है। 

पहले खंड में परिजनों से, 

दूसते खंड में साहित्यकारों से 

और तीसरे खंड में श्री नारायण पाण्डे को लिखे पत्र हैं।

विस्तार से फिर किसी पोस्ट में...

#jitendernath #bookhubb #नामवरसिंह #किताब #पुस्तक

Tumhara Namvar


Wednesday, June 21, 2023

Kaifi and I: Shaukat Kaifi Azmi

Kaifi and I
Kaifi and I

 Book: Kaifi and I

Writer: Shaukat Kaifi

Genre: Memoirs

Renowned economist and Noble prize winner Amartya Sen had written about 'Kaifi &I' - To say that this is a lovely book would be an understatement. It is an enchanting recollection of the life of a hugely talented and sensitive human being, shared with a great poet.


The above mentioned views are about 'Kaifi & I'- A Memoir written by Shaukat kaifi and translated by Nasreen Rehman.


After a long time, I got privilege to go through such a mesmerizing book. It is perfect example of magical translation of emotions and pathos. Through out of the book, Shaukat Kaifi has narrated her life in such a simple way that you feel the vibration of emotions, pain of struggle and magic of Kaifi Azmi. Kaifi Azmi, the great Shayar and poet, present in this book with all of his weaknesses and strengths. A great treat for book lovers and fans of Kaifi Azmi.

Main ye sochkar uske dar se utha tha ki vo rok legi, manaa legi mujhko..... A song from Hakikat, a pioneer war film by Chetan Anand, which make two minuses into huge plus for Indian cinema.


Saturday, February 11, 2023

चाल पे चाल: विकास नैनवाल: जेम्स हेडली चेज़: डॉल्स बैड न्यूज़

उपन्यास: चाल पे चाल (अनुवाद)

लेखक: विकास नैनवाल

मूल उपन्यास: डॉल्स बैड न्यूज़

मूल लेखक: जेम्स हेडली चेज़

प्रकाशक: बूकेमिस्ट/सूरज पॉकेट बुक्स

पृष्ठ संख्या: 232

MRP: 290/- 

अभी 'चाल पे चाल' उपन्यास पढ़ कर समाप्त किया। यह उपन्यास जेम्स हेडली चेज़ के उपन्यास 'डॉल्स बैड न्यूज़' का हिन्दी अनुवाद है जिसे विकास नैनवाल जी ने अंजाम दिया है।

आमतौर पर जेम्स हेडली चेज़ के उपन्यास मनोरंजक कहानी की गारंटी लिए होते हैं और यह उपन्यास भी उसकी पुष्टि करता है। विकास नैनवाल जी ने अपना काम ईमानदारी से किया है और उनकी मेहनत साफ झलकती है। 

कुछ शब्द जो भारतीय परिवेश के अनुसार प्रचलन में नहीं है, उनका खुलासा फुटनोट में अनुवादक द्वारा दिया गया है जो पाठकों के लिए सहायक होगा। मेरे अनुसार अगर क्यूट शब्द को यूँ का यूँ हिंदी में प्रयोग किया जा सकता है तो उसी पेज पर ब्लैक कॉफी को काली कॉफ़ी कहना अटपटा लगता है। अनुवादक की समस्याओं को मैं भली भांति समझता हूँ क्योंकि मैं स्वयं इसका भुक्तभोगी हूँ।

'चाल पे चाल' की कहानी की शुरुआत मेरियन डेली नाम की एक मुसीबतजदा लड़की के डेविड फेनर के ऑफिस में सहायता की उम्मीद लेकर पहुंचने से होती है। उस लड़की से मिली फीस और उसके हौलनाक अंजाम के चलते फेनर अपने कदम रोक नहीं पाता और स्वयं को एक ऐसे घटनाक्रम में फंसा हुआ पाता है जहाँ से उसका पीछे हटना मुमकिन नहीं था। घटनाक्रम तेजी से फेनर को अपनी चपेट में ले लेता है और उसका अंजाम क्या होता है यह तो आपको उपन्यास पढ़कर ही पता चलेगा।

उपन्यास का कवर डिज़ाइन आकर्षक है और विंटेज श्रेणी का दर्जा हासिल करने लायक है जिसके लिए निशान्त मौर्य बधाई के पात्र हैं। 

कुल मिलाकर चाल पे चाल एक सराहनीय प्रयास है जिसके लिए लेखक और प्रकाशक को बहुत बहुत बधाई। जेम्स हेडली चेज़ के चाहने वाले पाठकों के लिए 'चाल पे चाल' निश्चित रूप से एक संग्रहणीय उपन्यास है

जिस प्रकार से विकास जी अपने सधे हुए कदम साहित्य की दुनिया में बढ़ा रहे हैं, उससे मुझे लगता है वह दिन दूर नहीं है जब उनकी कलम से हमें उनके स्वयंरचित विविध साहित्य की रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी।

                       जितेन्द्र नाथ

Sunday, December 25, 2022

Chausar : Jitender Nath : Reviews

उपन्यास : चौसर- द गेम ऑफ डेथ
लेखक : जितेन्द्र नाथ
प्रकाशक : बूकेमिस्ट/सूरज पॉकेट बुक्स
अवेलेबल : Sooraj books link chausar
Amazon link चौसर
फ्लिपकार्ट link Chausar
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Reviews by Readers/Authors
चौसर - दि गेम ऑफ डेथ
जितेंद्र भाई का पहला उपन्यास राख पढ़ने के बाद से ही प्रतीक्षा थी उनकी अगली रचना की ,बल्कि उत्कंठा अधिक थी के क्या और कैसा कथानक लेकर आएंगे।
और फिर हाथ मे आया "चौसर " और 
जो पढ़ना शुरू किया तो राजनीति की बिसात पर बिछी रोचक और रोमांचक कहानी के बीच जिसमे जबरदस्त उतार चढ़ाव और तेज रफ्तार घटनाक्रम के बीच  कहानी में जहां राजनीति और औद्योगिक घरानों के बीच संबंधों और फिर उनसे पनपने वाले आतंक के रिश्तो की हकीकत से रूबरू करवाया उसके लिए निसंदेह आपने गजब का होमवर्क किया ।
          उपन्यास पढ़ते हुए कहानी के पात्र हमें हमारे देश काल और परिस्थितियों के अनुरूप ही लगते हैं जिनसे की पाठक तुरंत ही अपना तारतम्य स्थापित भी कर लेता है इससे कहानी में विश्वसनीयता के साथ-साथ पठनीयता का गुण भी  समावेश हो गया है । हालांकि कहानी का  ताना-बाना काफी घुमाव  लिए हुए हैं, लेकिन इन सब का समापन और उपसंहार  भी उतने ही सुघड़ , सुंदर और अच्छे तरीके से किया गया है , की उपन्यास अपनी छाप छोड़ जाता है ।
सच है आज भी हमारे देश कि जो हिफाजत सरहद पर हमारे सैनिक कर रहे हैं उनकी हमारे ही कुछ राजनेताओं को रत्ती भर भी फिक्र नहीं है । वह तो अपनी ओछी  राजनीति में ही उलझे रहते हैं , परन्तु जैसे के  आपने लिखा " देश की रक्षा के लिए शहीद होना ही हर सैनिक का परम लक्ष्य होता है " बिल्कुल सटीक पंक्तियां है  जो कि दिल को भीतर तक छू जाती है और मन में एक ही आवाज गूंजती है --जय हिंद -जय भारत ।
वर्तमान में आ रहे विभिन्न उपन्यासों के बीच बिछी कहानियों की बिसात  पर आपका यह उपन्यास शत प्रतिशत विजयी घोषित होता है। बहुत-बहुत बधाई , और  आगामी रचना के लिए भी शुभकामनाएं , जो की उम्मीद है जल्दी हमारे पास आएगी।
21.12 2022
आपका प्रशंसक
विशाल भारद्वाज
पोस्ट मास्टर
प्रधान डाकघर
श्री गंगानगर -335001
राजस्थान
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
संजीव शर्मा जी, सीनियर एडवोकेट, पुणे की कलम से....                                                  चौसर by जितेंद्रनाथ
बहुत दिनों बाद ऐसी किताब पढ़ी, जिसने पहले पेज की पहली लाइन से ही कहानी में इंटरेस्ट जगा दिया जो अंत तक जारी रहा. कहानी की सबसे बड़ी खूबी कहानी के पात्रों का शानदार चरित्र चित्रण है, हर पात्र को बहुत ही खूबी से लिखा गया है जिसके कारण वो याद रहते हैं चाहे वो अभिजीत देवल, राजीव, सुधाकर, नैना, नागेश, यासिर खान, आलोक देसाई या फिर योगराज, बसंत पवार, दिलावर, अब्बासी हो या राहुल तात्या, सभी कैरेक्टर का चरित्र चित्रण बहुत बढ़िया तरीके से हुआ है, जिसके लिए जितेंद्रनाथ जी बधाई के पात्र हैं.
     कथानक जो आतंकवाद पर आधारित है जो बेहद कसा हुआ है और कहीं भी बोर नहीं करता है, एक्शन भी जबरदस्त है जो कहानी के अनुरूप है सस्पेंस भी अच्छा रहा, एक बेहद विस्तृत कथानक को इतनी आसानी से, अच्छी भाषा, अच्छे शब्दों में लिख कर जितेंद्रनाथ जी ने साबित किया कि उनमें एक सफल लेखक बनने के सभी गुण मौजूद हैं जो हम पाठकों का लंबे समय तक मनोरंजन करेंगे. 
    चौसर निसंदेह एक शानदार, जबरदस्त किताब है जो लंबे समय तक याद रहेगी.
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
हीरा वर्मा जी की कलम से...
उपन्यास : चौसर - द गेम ऑफ डेथ
लेखक : जितेंद्र नाथ सर जी
प्रकाशन : सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ संख्या : 279
मूल्य : 360₹

बुकेमिस्ट के द्वारा शानदार कवर डिजाइन और किताब का नाम किसी भी पाठक को अपनी ओर आकर्षित करने से रोक न पाएगी।

लेखक सर की ये तीसरी किताब पढ़ रहा हूँ मैं "चौसर - द गेम ऑफ डेथ"
इसके पहले पढ़ी थी "राख" जो उनके द्वारा लेखन पर पकड़ दर्शायी थी जो कामयाब भी रही

उसी से आकर्षित हो कर ये पढ़ने बैठा

One word : लाजवाब

 *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम...*
द हार्ट टचिंग लाइन
दीदार सिंह के लिए तो वाह वाह  ही है
आंखे नम कर गए साहब

क्यो ? ये पढ़ के जानिएगा

कहानी शुरू होती है "पर्ल रेसिडेंसी" के होटल से जहाँ "विस्टा टेक्नोलॉजी" के 15 लोग 7 दिन की कॉन्फ्रेंस के लिए आये थे जिन्हें "सिग्मा ट्रेवल्स" की बस अपडाउन करती थी होटल से ऑफिस।

सारे गायब

क्यो ?

का जवाब तो पढ़ के ही मिलेगा

संवाद ने जीवंत बनाये रखा है दृश्य को जेहन में क्योकि चौसर में हार जीत लगी होती है , वही यहां पुलिस की मुठभेड़ ने ताज होटल याद दिला दिया साहब

बोले इसे ले कर और पढ़ कर आप कतई न पछतायेंगे फुलटू पैसा वसूल उपन्यास है।
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
[12/4, 5:23 PM] Jitender Nath: ('चौसर' एक शानदार उपन्यास ) 
जब मैं किसी उपन्यास को शानदार कहता हूं तो मेरे शब्दों में उसका अर्थ होता है कि उपन्यास की कहानी ने  एक समां बांध कर रख दिया, अंत वास्तव में बहुत अच्छा है, संवाद अच्छे हैं...
एक बानगी पढ़िए..
 (राजनीतिक एक चौसर का खेल है .........। जो खेल हम खेल रहे हैं वह हमारी जिंदगी की एक नई बाजी है । इस खेल में पासे चाहे कैसे भी पड़ें लेकिन हम लोगों को उम्मीद हमेशा जीत की होती है)
पुलिस की मुठभेड़ कई जगहों पर काफी जीवंत जान पड़ती है, मुठभेड़ के सारे सीन काफी मेहनत से लिखे गए हैं.... मजा आता है पढ़कर, 🥳🥳
जितेंद्र नाथ जी की यह रचना 'पैसा वसूल' है,
Deepankar Shashtri ji
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
मित्र एवं लेखक जितेन्द्र नाथ जी की “चौसर” पढ़ी गई । 📖
बहुत ख़ूब! इतने बड़े स्तर के कथानक को जिस सलीके के साथ (कम पृष्ठों में भी) पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया है,काबिले तारीफ़ है । 🙏
पुनश्च- अंतिम पृष्ठों तक बाँधे रखने और आँखें नम कर देने वाले लेखन के लिए लेखक महोदय को बधाई । 🌹
आबिद बेग जी 👆
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
नोवल - चौसर
लेखक - जितेंद्र नाथ
प्रकाशक - सूरज पॉकेट बुक्स
समीक्षक - दिलशाद सिटी ऑफ इविल वाले


अभी अभी जितेंद्र नाथ जी की चौसर पढ़कर पूरी की। इससे पहले मैने उनकी राख पढ़ी जिसने शानदार छाप छोड़ी थी। राख में पुलिस कार्यप्रणाली का सजीव रूप प्रतीत हुआ। चलिए बात करते हैं चौसर की, जिसकी कहानी शुरू होती है होटल पर्ल रेसीडेंसी से, रिसेप्शन पर रात के साढ़े नो बजे फोन बजता है। उधर से एक व्यक्ति अपने बेटे के बारे में पूछता है की क्या मेरा बेटा होटल पहुंच गया। सुबह को ज्ञात होता है कि विष्टा टेक्नोलोजी के पंद्रह एंप्लॉज जो पर्ल रेसीडेंसी में ठहरे थे अभी तक नही आए। ड्राइवर सहित सभी एंप्लॉयज के नंबर बंद जा रहे थे। सूचना पुलिस को दी जाती है। सिग्मा ट्रेवलर्स के दफ्तर से बस की आखिरी लोकेशन का पता चलता है। बस को घेर लिया जाता है लेकिन उसमे अजनबी ड्राइवर निकलता है। अब सभी का दिमाग चकरा जाता है की सभी यात्री कहां गए और ड्राइवर क्यों बदला।
अगली सुबह एक नदी में एक एंप्लॉय की लाश मिलती है।  एक दृश्य में 26 ग्यारह की याद ताजा हो जाती है। जब आतंकवादी एक होटल में हतियारो को गरजाते हुए हुए घुसते हैं। बेहद ही लाइव दृश्य महसूस होता है। आपको नोवल में अनेकों सवाल मिलेंगे जैसे...
बस अपने गंतव्य तक क्यों नही पहुंची?
जो ड्राइवर पकड़ा गया था वह खाली बस लेकर क्यों जा रहा था?
क्या एम्प्लेयर्स मिल सके?
किसका हाथ था एंप्लायस के गायब कराने के पीछे?
कहानी एक्शन पैड है। देशभक्ति से लबरेज है। देश की सुरक्षा दांव पर लगी है। देश के वीर, जांबाज, जान को जोखिम में रखने वाले हीरो इस मिशन में कूद पड़ते हैं। जैसा कि बताया है कहानी एक्शन पैड, सस्पेंस और देशभक्ति समेटे हुए हैं तो दिमागी मनोरंजन की आशा न करें। कहीं कहीं डायलॉग शानदार और जबरदस्त हैं। देश की सुरक्षा के लिए हमारे वीर क्या कर गुजरते हैं इस नोवल में दिखाया गया है। किरदारों में सुधाकर नागेश धनंजय राय, राजीव जयराम, आलोक देसाई, नैना दलवी, शाहिद रिज्वी, नागेश कदम, मिलिंद राणे जैसे हीरो थे। लेखक ने शानदार मराठी भाषा का भी प्रयोग किया है। 
एक शानदार डायलॉग जब श्रीकांत सुधाकर से पूछता है, "कैसे हो अब तुम? ज्यादा चोटें तो नही आईं?
तब सुधाकर बुलंद आवाज में कहता है, "ये चोटें तो हमारे शरीर का गहना है सर। जितनी बढ़ेंगी उतना ही मजा आयेगा।"
विदा लेता हूं आपसे फिर मुलाकात होगी, जितंद्रनाथ जी को ढेरों शुभकामनाएं।
 दिलशाद अली
★★★★★★★ ★★★★★★★★★★★★★★★

श्री मनेंद्र त्रिपाठी की कलम से चौसर के बारे में राय। हार्दिक आभार आपका मनेंद्र जी 💐💐💐
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"राख" के बाद लेखक का दूसरा शानदार कारनामा । वैसे भी जहां राख होती है वहां संभावी अगला काम होता है "गर्दा उड़ना' । लेखनी के इस फेरहिस्त में शामिल है "चौसर" जो इस धारणा के "गर्दे" उड़ा देती है कि कोई उपन्यास क्या एक्शन थ्रिलर हो सकती है ? जी हां हो सकती है ।

एक्शन, जिसको सिर्फ बड़े परदे पर ही महसूस किया जा सकता है, इस मिथक को बड़े ही आसानी से लेखक साहब ने जब्त कर के निर्माण किया है "चौसर"का । इस उपन्यास को पढ़ने के बाद आप अपनी भुजाएं फड़कती हुई महसूस करें तो कोई ताज्जुब नहीं । थ्रिलर और एक्शन का अनुपम मिश्रण महसूस करने के लिए इस उपन्यास को पढ़ें ।

कहानी बिल्कुल फ्रेश है । एक कंपनी की एक गाड़ी जिसमे कंपनी के बहुत से कर्मचारी अपनी छुट्टियां बिताने,तफरीह के वास्ते सवार होते है । अगले दिन गाड़ी के साथ साथ सभी कर्मचारी 'अंतर्ध्यान ' हो जाते हैं । बस यही से शुरू होता है एक्शन पैक्ड रोमांच । उपन्यास के हर पेज पर आपके रोमांच की सीमा बढ़ती चली जायेगी । बस आपको एक काम करना है कि इस उपन्यास को ध्यान से पढ़ना है क्योंकि इस उपन्यास में पात्र चरित्र थोड़े ज्यादा है इसलिए आपको कहानी के साथ साथ चलना है । देशभक्ति, राजनीति, षड्यंत्र,मजबूरी,कूटीनिति, शठे शाठ्यम समाचरेत् ,आदि अनेक विधाओं से गुजरते हुए यह उपन्यास आपको नम आंखों के साथ बहुत कुछ सोचने समझने के लिए छोड़कर तृप्त कर देगा ।


अगर आप प्रचलित श्रेणी के थ्रिलर उपन्यासों से बेजार हो चुके हैं तो आपको मौका है अपने सारे हिसाब बराबर करने का , अभी पढ़ना शुरू कीजिए "चौसर" । उपन्यास समाप्त होते होते अपनी भुजाएं खुद ब खुद फडकती महसूस होंगी। उपन्यासों में 'ट्विस्ट ' खोजने वालों को इस उपन्यास के बाद चाह होगी सिर्फ और सिर्फ रोमांच की ।

लेखक महोदय को इस हाहाकारी शाहकार के लिए अनगिनत धन्यवाद । आपकी आगामी रचना के लिए अभी से इंतजार करता हुआ लेखक का  एक उन्मादी पाठक ।

Saturday, October 8, 2022

Balraj Sahni : Meri filmy atamkatha

पुस्तक  : मेरी फिल्मी आत्मकथा 
लेखक : बलराज साहनी 
सम्पादन : संतोष साहनी 
प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स ( इंप्रिंट ऑफ पैंगविन बुक्स)
मूल्य : 199/-
पृष्ठ : 199

हिन्दी सिनेमा में बलराज साहनी को कौन नहीं जानता । बलराज साहनी किसी परिचय के मोहताज भी नहीं है । कौन भूल सकता है फिल्म सीमा का वह गीत जिसमें अपनी आँखों से लाचार किरदार गाता है 'तू प्यार का सागर है' और नूतन को राह दिखाता है । हिन्दी फिल्म के इतिहास में स्वरणक्षरों में दर्ज की गई 'दो बीघा जमीन' का वह मजदूर किसान जिसे बलराज साहनी ने अपने अभिनय से जीवंत कर दिया था, आज भी फिल्मी दीवानों के दिलो दिमाग पर छा जाता है । बलराज साहनी की अन्य महत्वपूर्ण फिल्में है : भाभी, अनपढ़, वक्त, अनुपमा, काबुलीवाला, हँसते जख्म, गरम हवा, पराया धन इत्यादि ।

प्रस्तुत किताब बलराज साहनी का फिल्मी सफरनामा ब्यान करती है जिसका वर्णन बलराज साहनी ने किया है । शायद यह पुस्तक पहले पंजाबी में छपी थी जिसे हिन्दी में बाद में प्रकाशित किया गया है । बलराज साहनी की यह किताब पढ़ना एक तरह से अतीत के सिनेमा की यात्रा करने के समान है । यह पुस्तक अपने समय की एक चर्चित पुस्तक है जिसे सिनेप्रेमियों और साहित्य प्रेमियों ने बड़ा सराहा था । पुस्तक के रूप में छपने से पहले यह किसी अखबार में शायद धारावाहिक के रूप में छपी थी ।

बलराज साहनी के कैरियर की शुरुआत शांतिनिकेतन में अध्यापन के तौर पर शुरू हुई लेकिन मन उनका अभिनय के क्षेत्र में पलायन करने को हमेशा बेताब रहता था । उनकी पहली पत्नी दमयंती, जिसका जिक्र उन्होंने दम्मो के रूप में किया है, उनके साथ शांतिनिकेतन और रेडियो में समान रूप से सक्रिय रहीं । फिल्मों में दमयंती का कैरियर बलराज से पहले शुरू हुआ जिसकी कुंठा का बलराज जी ने बड़ी बेबाकी से वर्णन किया है । इतना बड़ा अभिनेता भी पौरुष दंभ और कुंठा का शिकार रहा जिसे बलराज जी ने ईमानदारी से स्वीकार किया है । 

'मेरा कर्तव्य था कि उस समय अपनी पत्नी की ढाल बनता, उसके कलात्मक जीवन की कद्र करता, रक्षा करता, उसे फिज़ूल के झमेलों से बचाता और पारिवारिक जीवन की जिम्मेदारियाँ अपने ऊपर लेता । पर मैं अपनी संकीर्णता के कारण मन ही मन दम्मो की प्रसिद्धि से ईर्ष्या करने लगा था । वह स्टूडिओसे थकी हारी हुई आती तो मैं उससे ऐसा सलूक करता जैसे वह कोई गलती करके आई हो । मैं चाहता कि वह आते ही घर के काम-काज में लग जाये जोकि मेरी नजर में उसका असली काम था । अपने बड़प्पन का दिखावा करने के लिए मैं इप्टा और कम्यूनिस्ट पार्टी के अनावश्यक काम भी करने लग जाता था..... बेचारी बिना किसी शिकायत के वह सारा भार उठाती गई जिसे उठाने का उसमें सामर्थ्य नहीं था । इन बातों को याद करके मेरे दिल में टीस उठती है । दम्मो एक अमूल्य हीरा थी जो उसके माता-पिता ने एक ऐसे व्यक्ति को सौंप दिया था जिसके दिल में न उसकी कोई कद्र थी, न ही कोई कृतज्ञता का भाव था । (पेज 127) 

बलराज साहनी ने सपत्नीक बीबीसी लंदन में काम किया और उस वक्त के जीवन और बेफिक्री का, जिसे हम भौतिक सुख-सुविधा का आभा मण्डल कह सकते हैं, बड़े विस्तार से वर्णन किया है । उस वक्त सिनेमा का विकास हो रहा था और विश्व में साहित्य को सिनेमा के पर्दे पर उतारा जा रहा था । उनके मन पर उस वक्त की एक रूसी फिल्म 'सर्कस' का बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा । उस वक्त की रूसी फिल्मों के प्रभाव के कारण वे कम्यूनिस्ट विचारधारा की तरफ मुड गए ।

'इस तरह सोवियत यूनियन, मार्क्सवाद और लेनिनवाद से मेरी पहचान फिल्मों के द्वारा हुई । मैं उस देश को जानने के लिए उत्सुक हो गया जो इतनी अच्छी फिल्में बनाता था ... मार्क्सवाद के बारे में पढ़ते हुए मुझे रजनी पामदत्त और कृष्ण मेनन का पता चला । मुझे समझ आने लगा कि महायुद्ध क्यों होता है ? (पेज 38)

आज हम बलराज साहनी को एक महान अभिनेता के तौर पर जानते हैं । अभिनय के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने से पहले उन्हें अपनी जड़ता की बेड़ियाँ तोड़ने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा । इसके लिए चरित्र अभिनेता डेविड के साथ बलराज साहनी का संस्मरण एक अभिनेता के रूप में उनकी बेचैनी को दर्शाता है । 'हम लोग' की सफलता से पहले इस जड़ता ने उनका पीछा नहीं छोड़ा । महान फ़िल्मकार के आसिफ की फिल्म 'हलचल' के वक्त का अनुभव वे कुछ यूं दर्ज करते हैं : 

'कैमरे के सामने जाना मुझे सूली पर चढ़ने के बराबर लगता था । मैं अपने आपको संभालने की बहुत कोशिश करता । कई बार रिहर्सल भी अच्छी भली कर जाता ।  सभी मेरी हिम्मत बढ़ाते । पर शॉट के एन बीच में मुझे पता नहीं क्या हो जाता कि मुझे अपने अंग अंग जकड़ा हुआ लगता...' पेज 150  

'मेरी फिल्मी आत्मकथा' अभिनय के शिखर पर पहुंचे हुए एक महान अभिनेता के फिल्मी अनुभव है जिसे बड़ी ईमानदारी के साथ लिखा गया है । लेखन शैली के हिसाब से यह संस्मरणात्मक पुस्तक बेजौड़ है और साहित्य में एक अलग स्थान रखती है । फिल्मों से प्रेम करने वाला व्यक्ति इसे अवश्य ही पढ़ना चाहेगा लेकिन प्रकाशन की हल्की गुणवत्ता पाठकों को निराश करती है ।

पुस्तक की क्वालिटी के कड़वे अनुभव : 

बलराज साहनी की यह किताब बड़े चाव से मंगवाई थी। इस किताब के साथ बड़े प्रकाशन 'पेंगुइन' का नाम जुड़ा है लेकिन किताब में इतनी गलतियां है कि सारा मजा किरकिरा हो गया। प्रूफ रीडिंग बहुत ही निचले स्तर की है... या यूं कहिए कि स्तर है ही नहीं
आप भी गौर कीजिए...
इतनी शानदार आत्मकथा का दोयम दर्जे का प्रस्तुतिकरण दिल को दुखा गया। 
आलम आरा मूवी को सभी भारतीय जानते हैं और बलराज साहनी उसको गलत नहीं लिख सकते। जिन पृष्ठों को मैंने शेयर किया है, उसमें आप पालम पारा... पालम आरा छपा हुआ देख सकते हैं। पी सी बरुआ अपने समय के दिग्गज निर्देशक थे। पर पेज नंबर 31पर बरुणा, बरुमा, बरूपा लिखा हुआ है मजाल है कहीं बरुआ छापने की जहमत उठाई हो। संगीत निर्देशक आर सी बोराल को पार सी बोराल लिखा गया है। बलराज साहनी चाहे किसी भी भाषा में लिखें लेकिन उन जैसा जहीन कलाकार ऐसी गलती नहीं करेगा। यह सरासर प्रकाशन में हुई लापरवाही है। हर पेज पर यही हाल है।
पुस्तक का प्रस्तुतुकरण भी बेहद बचकाना है । आवरण पृष्ठ के लिए ब्ल्राज साहनी के चित्र निराश करता है । यकीनन बलराज साहनी के इससे श्रेष्ठ छाया चित्र उपलब्ध होंगे । पैंगविन और हिन्द पॉकेट बुक्स के बड़े नाम जुड़े होने के बावजूद पुस्तक का प्रस्तुतुकरण निराश करता है ।
         © जितेन्द्र नाथ 

मेरी फिल्मी आत्मकथा : बलराज साहनी 

त्रुटियों की भरमार 
घटिया स्तर की प्रूफ रीडिंग
गलतियाँ ही गलतियाँ 

Tumhara Namvar : Namvar Singh

पुस्तक: तुम्हारा नामवर लेखक: नामवर सिंह संपादन: आशीष त्रिपाठी प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली आचार्य राम चन्द्र शुक्ल, राम विलास शर्मा, म...